बुधवार के व्रत कीपूजा/व्रत/लाभ/ गणेश चालीसाआरती एवं नियमों की संपूर्ण जानकारी
बुधवार के व्रत कीपूजा/व्रत/लाभ/ गणेश चालीसाआरती एवं नियमों की संपूर्ण जानकारी
किसी भी शुभ कार्य के लिएअथवा किसी भी कार्य के प्रारंभ के लिए सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा की जाती है और उनसे कार्य के मंगल होने की कामनाकी जाती हैइसी प्रकार भगवान बुद्ध की पूजा भी इसी दिन की जाती हैउनके मित्रों का जब पूजा अर्चना कथा आदि करके मनुष्य अपने कई प्रकार की समस्याओं से मुक्ति पता हैऔर इसी के साथ-साथ ईश्वर की अनुकंपा भी विशेषता प्राप्त होती है अतः इस दिन भगवान बुद्ध और भगवान गणेश दोनों की पूजा करना अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होता है
बुधवार सप्ताह का तीसरा दिन होता है और यह दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित होता है. बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा का विधान
१ -बुध का व्रत 45, 21 या 17 बुधवारों तक करना चाहिए। बुधवार के व्रत का प्रारंभ शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से प्रारंभ किया जाना चाहिए और इसी दिन भगवान के समक्ष संकल्प लेना चाहिए जितने दिन भी आपकी श्रद्धा हो आप कर सकें
२- हरे रंग का वस्त्र धारण करके ‘ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:’ इस मंत्र का 5 या 3 माला जप करें।
३ – भोजन में नमकरहित मूंग से बनी चीजें खानी चाहिए। जैसे मूंग का हलवा, मूंग की पंजीरी, मूंग के लड्डू इत्यादि।
बुधवार व्रत पूजा विधि
१-बुधवार के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें।और साफ वस्त्र धारण करें
२-फिर ईशान कोण में मुख करके आसन पर बैठें।
३-भगवान श्री गणेश की मूर्ति अथवा चित्र कीस्थापना करें और उन्हें अपने निवास स्थान से अपने घर के पूजा स्थान पर हाथ जोड़कर विनती करके आमंत्रित करें
४-श्री गणेश और बुध देव का श्रद्धापूर्वन ध्यान करें।
५-श्री गणेश को दूर्वा और पीले पुष्प अर्पित करें।
६-साथ ही हरे रंग के वस्त्र बुध देव को चढ़ाएं।
७-श्री गणेश के मंत्रों का जाप करें।और भगवान से अपने इस उपवास कीभली भांति पूर्ति होने के लिए भी उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें और भगवान की छवि को अपने मस्तक पर महसूस करें
बुधवार के दिन व्रत में क्या खाना चाहिए?
बुधवार के दिन व्रत करने वालों को एक समय खाना चाहिए. वो एक समय दही, हरी मूंग दाल का हलवा या फिर हरी वस्तु से बनी चीजों का सेवन कर सकते हैं सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए
बुधवार का व्रत करने से क्या लाभ होता है?
१ – बुधवार का व्रत करने से जीनव में धन की कमी से मुक्ति मिलती है, और सुखों की प्राप्ति होती है।धीरे-धीरे व्रत करने से व्यक्ति का जीवन धन-धन से परिपूर्ण होने लगता है क्योंकि इस व्रत को करने से भगवान गणेश और बुद्ध भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होने लगती है और धन प्राप्ति के नए-नए रास्ते आपके सामने आने लगते हैं
२ – बुध को व्यापारियों का स्वामी माना जाता है। इसीलिए अगर आप के व्यापार में परेशानियां आ रहीं हैं तो ये व्रत करने से परेशानियां दूर हो सकतीं हैं। किसी भी प्रकार से व्रत आप ना कर सके तो कम से कम भगवान के इन मंत्रो का जाप और कम से कम 5 से 10 मिनट तक उनका ध्यान अवश्य ही करना चाहिए
३-भोजन के साथ ही साथ मन ,वचन की शुद्ध होना भी अत्यधिक आवश्यक है अतः इस दिन पूरा ध्यान परमात्मा में ही गणेश भगवान के मंत्रो और बुद्ध भगवान की पूजा अर्चना में ही बिताना चाहिए और मन ही मन में उनका सदैव स्मरण करते रहना है
बुधवार के दिन पालक या सरसों का साग, हरा धनिया, हरी मिर्च, पपीता, अमरूद, नमकपारे, हरी मूंग की दाल आदि जैसी चीजों की खरीदारी नहीं करनी चाहिए.,बुधवार को इन चीजों की खरीदारी से नकारात्मक परिणाम और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है.
बुधवार का व्रत क्यों रखें?
ऐसा माना जाता है कि बुधवार का व्रत आपके बौद्धिक विकास को बढ़ाने और बुध ग्रह के शुभ फल प्राप्त करने वाला होता है। ऐसा कहा जाता है कि इससे मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं और धन-सुख की प्राप्ति हो सकती है।
यह व्रत कब से शुरू करना चाहिए ?
किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से आरंभ करें और लगातार 21 बुधवार तक करें। सुबह स्नान करके हरे वस्त्र पहनें और भगवान (बुध) की पूजा करें ।साथ ही गणेश चालीसा ,आरती सहित गाए
नियम –
आपको सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और फिर अपने घर की सफाई करनी चाहिए। पूरे घर को गंगाजल या किसी पवित्र नदी के जल से पवित्र करें।
भगवान की स्थापना –
अब जहां भी घर का ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) हो वहां भगवान बुध या शंकर की मूर्ति लगाएं और अगर आपके पास मूर्ति नहीं है तो किसी बर्तन तस्वीर लगा दें । धूप, अक्षत, बेलपत्र और घी के दीपक से भरी पूजा की थाली के साथ, मंत्र का जाप करें और बुध देव की पूजा करें।
जब पूरा दिन समाप्त हो जाए और आपका व्रत भी समाप्त हो जाए, तो शाम के समय भगवान बुध की पूजा करें और व्रत कथा सुनें या पढ़ें। आरती करें और सूर्यास्त के बाद दीपक, गुड़, अगरबत्ती, भात (उबले चावल), दही से पूजा करें और फिर प्रसाद वितरित करें।
व्रत कथा-
समतापुर नगर में मधुसूदन नाम का एक धनवान व्यक्ति रहता था। उनका
उनका विवाह बलरामपुर की एक गुणी कन्या संगीता से हुआ था जो अपनी सुंदरता के लिए विख्यात थी। एक दिन बुधवार के दिन मधुसूदन अपनी पत्नी को लेने के लिए बलरामपुर गया। उन्होंने उसके माता-पिता से अपनी बेटी को विदा करने के लिए कहा। माता-पिता ने कहा, “बेटा बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं की जाती।”
लेकिन इससे मधुसूदन को कोई फर्क नहीं पड़ा. वह शुभ- अशुभ में विश्वास नहीं करता था इसलिए संगीता को मजबूरन अपने माता-पिता से विदा लेनी पड़ी।
जैसे ही दंपति ने बैलगाड़ी में अपनी यात्रा शुरू की लेकिन कुछ ही दूरी के बाद गाड़ी का पहिया टूट गया। वे पैदल यात्रा करने लगे और थोड़ी देर बाद संगीता को प्यास लगी। उसका पति मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर उसके लिए पानी लेने चला गया।
जब वह वापस आया तो उसकी पत्नी के बगल में एक आदमी बैठा था। संगीता भी उसे देखकर चौंक गई, क्योंकि उसका पति और वह आदमी बिल्कुल एक जैसे लग रहे थे।
मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा कि वह कौन है और वह संगीता के बगल में क्यों बैठा है, जिस पर उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि वह उसे उसके माता-पिता के घर से विदाई करा के लाया था, लेकिन उस व्यक्ति ने बदले में मधुसूदन से प्रश्न किया वो कौन हैं?
इस पर मधुसूदन ने चिल्लाकर कहा, “तुम अवश्य चोर या ठग हो। वह मेरी पत्नी संगीता है. मैंने उसे पेड़ के नीचे बैठाया और पानी लाने के लिए चला गया।”
यह सुनकर वह आदमी बोला, “अरे भाई तुम झूठ बोल रहे हो।” संगीता को प्यास लगी तो मैं पानी लाने गया. मैं उसे पहले ही पानी पिला चुका हूं. अब तुम शांत होकर यहां से चले जाओ. नहीं तो मैं किसी सिपाही को बुलाकर तुम्हें पकड़वा दूँगा।”
इसके बाद दोनों में झगड़ा हुआ और कई लोग देखते रहे। कुछ सैनिक भी अन्दर आ गये और वे उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गये। दोनों बातें सुनने के बाद राजा भी कुछ निर्णय न कर सका। संगीता भी यह नहीं पहचान पाई कि उसका असली पति कौन है।
दोनों जेल में थे जिससे असली मधुसूदन डर गया। तभी आकाशवाणी हुई मधुसूदन! आपको संगीता के माता-पिता की बात सुननी चाहिए थी और बुधवार को प्रस्थान नहीं करना चाहिए था। यह सब बुधदेव के प्रकोप के कारण हो रहा है।”
क्षमा मांगते हुए मधुसूदन ने भगवान बुध देव से प्रार्थना की और वादा किया कि वह हर बुधवार को व्रत रखेंगे।
उसे माफ कर दिया गया और वह किया मनुष्य तुरंत गायब हो गया। इसने कई लोगों को हैरान कर दिया,इस तरह ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मानजनक विदाई दी।
बैल के पहिये की मरम्मत की गई और वे समतापुर चले गए। दंपत्ति ने बुधवार का व्रत रखना शुरू कर दिया और खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे।
बुधवार व्रत आरती
आरती युगलकिशोर की कीजिए।
तन मन धन न्योछावर कीजिए।
गोरश्याम मुख निरखं लिजिए।
हरि का रूप नयन भारी पिजिए।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा।
ताहि निरखि मेरो मन लोभा।
ओधे नील पीत पट सारी।
कुंजबिहारी गिरिवरधारी।
फूलन सेज फूल की माला।
रतन सिंहासन बताइ नन्दलाल।
कंचन थार कपूर की बाती |
हरि आये निर्मल भाई चाटी।
श्रीपुरुषोतम गिरिवरधारी।
आरती करे सकल नर नारी।
नन्दनन्दन बृजभान किशोरी।
परमानंद सवामि अविचल जोरि।
गणेश चालीसा का पाठ –
॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन,कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण,जय जय गिरिजालाल ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥
॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान ॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ॥
भगवान गणेश जी की आरती
गणेश भगवान और बुद्ध भगवान की पूजा विधि संपन्न करने के पश्चात चालीसा आदि का पाठ करकेअपनी पूजा को आरती के साथ संपन्न अवश्य करना चाहिए
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा