मां वैभव लक्ष्मीके व्रत की कथा/व्रत शुरू करने की विधि/लक्ष्मी चालीसा/आरती सहित

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मां वैभव लक्ष्मीके व्रत की कथा/व्रत शुरू करने की विधि/लक्ष्मी चालीसा/आरती सहित

 

भारत में कई तीज उपवास व्रत आदि किए जाते हैं जो समय-समय पर व्यक्ति को ईश्वर के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए भिन्न-भिन्न तरीकों से उसे जोड़ते हैं जिसमें से व्रत एक मुख्य  साधन है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आप पर विभिन्न प्रकार से  अपनी इन्द्रियों  को नियंत्रित करके ईश्वर के साथ भक्ति भाव में लीन हो जाता है

 

हर एक व्यक्ति धन की कामना करता है धन के साथ-साथ सद्बुद्धि भी माता वैभव लक्ष्मी का व्रत प्रदान करता है अतः इस व्रत को करने से व्यक्ति की समस्त इच्छाएं शीघ्र ही पूरी होती हैं

 

यह व्रत शीघ्र फलदाई है किंतु यदि फल ना दे तो 3 माह के बाद फिर से यह व्रत शुरू करना चाहिए और जब तक मनोवांछित फल ना मिले तब तक यह व्रत तीन-तीन महीने पर करते रहना चाहिए इसका फल अवश्य ही मिलता है

 

व्रत शुरू करने से पहले की विधि

1-श्रीयंत्र के सामने देखकर श्री  यंत्र को प्रणामऐसा बोलकर श्री यंत्र को प्रणाम करें

2-बाद में लक्ष्मी जी के आठ स्वरूप की छवियों को प्रणाम करें

1-धनलक्ष्मी एवं वैभव लक्ष्मी स्वरूप

2-श्री गज लक्ष्मी मां

3-श्री आदि लक्ष्मी मां

4-श्री विजयालक्ष्मी मां

5-श्री ऐश्वर्या लक्ष्मी मां

6-श्री वीर लक्ष्मी मां

7-श्री धन्य लक्ष्मी मां

8-श्री संतान लक्ष्मी मां

 

इसके पश्चात लक्ष्मी स्तवन का पाठ करें

लक्ष्मी स्तवन का पाठ हिंदी मेंप्रस्तुत है-

जो लाल कमल में रहती है जो अपूर्व कांति वाली है जो असहाय तेज वाली है जो पूर्ण रूप से लाल है जिस दिन लाल रंग के वस्त्र पहने हैं जो भगवान विष्णु को अति प्रिय है जो लक्ष्मी मां को आनंदित करती है तो समुद्र मंथन से प्रकट हुई है जो विष्णु भगवान की पत्नी है जो कमल से जन्मी है और जो अतिशेष पूज्य है वैसे ही है देवी आप मेरी रक्षा करें

 

1-श्री गज लक्ष्मी मां-हे गज लक्ष्मी मां आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुए वैसे सब पर प्रसन्न हो और सब की मनोकामना पूरी करें

 

2-श्री आदि लक्ष्मीमां – हे लक्ष्मी मां आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुए वैसे सब पर प्रसन्न हो और सब की मनोकामना पूरी करें

 

3-श्री विजय लक्ष्मी मां-हे विजयलक्ष्मी मां आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुए पैसे सब पर प्रसन्न हो और सब की मनोकामना पूरी करें

 

4-श्री ऐश्वर्या लक्ष्मी मां-हे  ऐश्वर्या लक्ष्मी मां आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुए वैसे सब पर प्रसन्न हो और सब की मनोकामना पूरी करें

 

5-श्री वीर लक्ष्मी मां-हे वीर लक्ष्मी मां आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुए वैसे सब पर प्रसन्न हो और सब की मनोकामना पूरी करें

 

6-श्री धनी लक्ष्मी मां -हे धन लक्ष्मी मां आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुए वैसे सब पर प्रसन्न हो और सब की मनोकामना पूरी करें

 

7-श्री संतान लक्ष्मी मां-हे  संतान लक्ष्मी मां आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुए वैसे सब पर प्रसन्न हो और सब की मनोकामना पूरी करें

 

वैभव लक्ष्मी व्रत करने के नियम

1-वैभव लक्ष्मी व्रत करने के नियमों का निश्चय रूप से पालन करना चाहिए जिससे व्रत सफल होता है

1-यह व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां करें तो उनका अति उत्तम फल मिलता है यदि घर में कोई सौभाग्यशाली स्त्रियां ना हो तो कोई भी स्त्री अथवा कुमारी का भी यह व्रत कर सकती है

 

2-स्त्री के बदले पुरुष भी यह व्रत कर सकते हैं और इसका उत्तम फल प्राप्त होता है

3-यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भावना से करना चाहिए खिन्न  होकर या बिना भाव से यह व्रत नहीं करना चाहिए

4-यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है व्रत शुरु करते समय 11 या 21 शुक्रवार की मन्नत रखनी पड़ती है और पुस्तक में लिखी शास्त्रीय विधि के अनुसार ही व्रत करना चाहिए मन्नत के शुक्रवार पूरे होने पर विधिपूर्वक और शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन विधि करनी चाहिए यह विधि सरल है

 

5-एक बार व्रत पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत कर सकते हैं और फिर से व्रत कर सकतेहैं

 

6-माता लक्ष्मी की अनेक स्वरूप है उनमें उनका धन लक्ष्मी स्वरूप ही वैभव लक्ष्मी है और माता लक्ष्मी को श्री यंत्र अति प्रिय है व्रत करते समय लक्ष्मी जी के हर स्वरूप को और श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिए तभी व्रत का फल मिलता है

 

7-व्रत के दिन सुबह से ही जय मां लक्ष्मी,जय मां लक्ष्मी का महिमा रटते रहना चाहिए और मां का पूरे भाव से स्मरण करना चाहिए

 

8-शुक्रवार के दिन यदि आप प्रवास या यात्रा पर गए हो तो वह शुक्रवार छोड़कर उसके उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए या व्रत अपने ही घर में करना चाहिए, सब मिलकर जितने शुक्रवार की मन्नत ली हो उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए

 

9-घर में सोने ना हो तो चांदी की चीज की भी पूजा में रखनी चाहिए अगर वह भी ना हो तो  रुपया रखना चाहिए

 

10-वह पूरा होने पर काम से कम सात स्त्रियों को अपनी इच्छा के अनुसार 11,21,51,101 स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके बैठ के रूप में देना चाहिए जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगे उतनी मां लक्ष्मी की कृपा होगी और मां लक्ष्मी की या अद्भुत व्रत का ज्यादा प्रचार होगा

 

11-व्रत के शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो तो वह शुक्रवार छोड़ देना चाहिए और बाद के  शुक्रवार से व्रत शुरू करना चाहिए पर जितने शुक्रवार की मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए

 

12-व्रत की शुभ विधि शुरू करते समय लक्ष्मी स्तवन का पाठ एक बार करना चाहिए

 

13-व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिए और शाम को विधि के अनुसार मां का प्रसाद लेकर शुक्रवार का व्रत पूर्ण करना चाहिए अगर ना हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन करके शुक्रवार का व्रत करना करना चाहिए अगर व्रत धारी का शरीर बहुत कमजोर है तो दो बार ही भोजन ले सकते हैं सबसे महत्व की बात यह है कि व्रतधारी मां लक्ष्मी जी पर पूरी-पूरी श्रद्धा और भावना रखें और मेरी मनोकामना मन पूरा करेंगे ऐसा संकल्प करें

 

मां  वैभव लक्ष्मी आप पर प्रसन्न हो

 

वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा

एक बड़ा शहर था इस शहर में लाखों लोग रहते थे पहले के जमाने के लोग साथ-साथ रहते थे और एक दूसरे के काम करते थे पर नए जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है सब अपने-अपने काम में रत रहते हैं किसी को किसी की परवाह नहीं करके सदस्यों को भी एक दूसरे की परवाह नहीं होती है भजन, कीर्तन, भक्ति -भाव, दया ,माया ,परोपकार जैसे संस्कार कम हो गया  है शहर में बुराइयां बढ़ गई थी शराब ,जुआ, रेस ,चोरी ,डकैती वगैरा आदि बहुत से गुनाह शहर में होते थे

 

कहावत है कि हजारों निराशा में एक आशा छुपी हुई रहती है इसी तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे

 

ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी  मानी जाती थी शीला धार्मिक प्रवृत्ति की और संतोषी थी उनके पति भी विवेक की और सुशील था

शीला और उनके पति ईमानदार से जीते थे वह किसी की बुराई ना करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत करते थे उनकी गृहस्थी एक आदर्श गृहस्थी थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे

 

शीला की गृहस्थी  इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी पर कहा जाता है कि कर्म की गति अकल है विधाता के लेख कोई नहीं समझ सकता है इंसान का नसीब पल भर में राजा को रंक  बना देता है और रंक को राजा, शीला के पति के पूर्व  जन्म के कर्म भोगने के बाकी रह गए होंगे और वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा वह जल्द से जल्द करोड़पति होने के ख्वाब देखने लगा इसीलिए वह गलत रास्ते पर चला गया और करोड़पति  की बजाय रोड पति बन गया यानी रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी

 

शहर में जुआ, शराब, चरस, गांजा, वगैरा, बंदिया फैली हुई थी उसमें शीला का पति भी फस गया दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई जल्द से जल्द पैसा का बनाने  की लालच में दोस्तों के साथ रेस जो अभी खेलने लगा इस तरह बचाई हुई धनराशि पत्नी के गने सब कुछ रेस हुए में गवा दिया था

 

इसी तरह एक वक्त ऐसा भी था कि वह सुशिल पत्नी शीला के साथ मजे में रहता था और प्रभु भजन में सुख शांति से वक्त व्यतीत करता था उसके बजाय  घर में दरिद्रता, दुख भरी फैल गई, सुख से खाने की बजाय दो  वक्त भोजन के लिए भी लाले पड़ गए थे और शीला को पति की गालियां खाने का वक्त आया था

 

शीला  सुशील और संस्कारी स्त्री थी उसको पति के बर्ताव से बहुत दुख हुआ किंतु भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रखकर दुख सहने लगी कहा जाता है कि सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख आता ही है इसीलिए दुख के बाद सुख आएगा ही ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी

 

इसी तरह शीला अत्यंत  दुख सहते प्रभु भक्ति में बिताने  लगी अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वारा पर किसी ने दस्तक दी

 

शीला सोच  में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीबों के घर इस वक्त कौन आया होगा

 

फिर भी द्वार पर आए हुए अतिथि का आदर करना चाहिए ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वारा खोला

 

देखा तो एक माजी  खड़ी हुई थी वह बड़ी उम्र की लगती थी किंतु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था उनकी आंखों में से मानो अमृत बह रहा था उनका  चेहरा करुणा और प्यार से छलकता था उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई वैसे शीला इस मांजी को पहचानती न थी  फिर भी उनको देखकर शीला के रोम -रोम में आनंद छा गया ,माँ  जी को अंदर आदर  के साथ लेकर आई घर में बैठने के लिए कुछ भी नहीं था अतः शीला ने सकुचाते हुए  एक फटी हुई चद्दर पर उनको बिताया

 

मां जी ने कहा ,क्यों शीला? मुझे पहचाना नहीं ?

शीला ने ऐसा कुछ आकर कहा:मां आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है बहुत शांति हो रही है ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूंढ रही थी वह आप ही हैं पर मैं आपको पहचान नहीं सकती

 

पति गलत रास्ते पर चला गया था तब से शीला बहुत दुखी हो गई और दुख की मारी मां लक्ष्मी जी के मंदिर में भी नहीं जाती थी बाहर  के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी उसे याददाश्त पर जोर दिया पर मांजी  याद नहीं आ रहे थे

 

तभी मांजी ने कहा तो लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी अभी-अभी तू दिखाई नहीं देती थी इसलिए मुझे हुआ कि तू क्यों नहीं आती है कहीं बीमार तो नहीं हो गई है ना?ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने के लिए चली आई हूं

 

मांजी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का सदैव पिघल गया उसकी आंखों में से आंसू आ गए मांजी के सामने वह बिलख – बिलख कर रोने लगी यह देखकर हमारी शीला के नजदीक कर के और उसकी  पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगे

मांजी ने कहा: बेटी सुख और दुख तो धूप और छांव जैसे होते हैं सुख के पीछे दुख आता है तो दुख के पीछे सुख भी आता है धैर्य रखो बेटी और तुझे क्या परेशानी है तेरे दुख की बात मुझे सुनाओ, तेरा मन भी हल्का हो जाएगा और तेरे दुख का कोई उपाय भी मिल जाएगा

 

मांजी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली उसे माया को कहा मां मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियां थी पर पति भी सुशील थे भगवान की कृपा से पैसे की बात में भी हमें संतोष था अब हम शांति से गृहस्थी चलाते-चलाते ईश्वर भक्ति में अपना समय व्यतीत कर रहे थे हमारा भाग्य हमसे रूठ गया मेरे पति की बुरी दोस्ती हो गई,बुरी दोस्ती की वजह से शराब, जुआ, रेस, चरस गांजा, वगैरा खराब आदतों के शिकार हो गए और उन्होंने सब कुछ गंवा दिया और हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गए

 

यह सुनकर मांझी ने कहा कि सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख आता ही है ऐसा भी कहा जाता है कि कर्म की गति न्यारी होती है हर इंसान को अपने करो भुगतने पड़ते  हैं इसीलिए तो चिंता मत कर अब तू करम भुगत चुकी है तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएंगे तू तो मां लक्ष्मी जी की भक्त है मां लक्ष्मी तो प्रेम और करुणा के अवतार हैं वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती है इसीलिए रखें मां धैर्य लक्ष्मी जी का व्रत कर इसे सब कुछ ठीक हो जाएगा

 

मां लक्ष्मी का व्रत करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई उसने पूछा मां लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है वह मुझे समझाइए यह मैं यह व्रत अवश्य करूंगी

 

मां जी ने कहा बेटी मां लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है उसे वरद  लक्ष्मी व्रत या वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है यह व्रत करने वालों की सब मनोकामना पूर्ण होती है वह सुख संपत्ति और यश प्राप्त करता है ऐसा कहकर मां की वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि कहने लगी

बेटी वैभव लक्ष्मी व्रत तो वैसे बहुत सीधा-साधा व्रत है किंतु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से  करते हैं अतः उसका फल नहीं मिलता है कई लोग कहते हैं कि सोने की गहने की हल्दी कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया पर ऐसा नहीं है कोई भी व्रत शास्त्रीय पूर्वक विधि अनुसार करना चाहिए तभी उसका फल मिलता है सिर्फ सोने के गने की पूजा करने से फल मिल जाता है तो सभी लोग आज लखपति बन गए होते सच्ची बात यह है कि सोने की गहन का विधि से पूजन करना चाहिए व्रत की उद्यापन विधि शास्त्रीय  विधि मुताबिक करनी चाहिए तभी यह वैभव लक्ष्मी व्रत फल देता है

 

यह वह शुक्रवार को करना चाहिए सुबह में स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन मन में जय मां लक्ष्मी, जय मां लक्ष्मी का रटते रहो ,किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए शाम को पूर्व दिशा में मुंह रख सके इस प्रकार के आसन पर बैठ जाओ

 

सामने पट्टा  रखकर उसके ऊपर रुमाल रखो।,रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर रखो ,उसे ढेर  पर पानी से भरा तांबे का कलश रखो, कलश पर एक कटोरी रखो, सोने का ना हो तो चांदी का भी चलेगा चांदी का ना हो तो नगद रुपया भी चलेगा, बाद में घी का दीपक जलाकर धूप-बत्ती जलाना है

 

 मां लक्ष्मी जी को श्री यंत्र अति प्रिय है अतः वैभव लक्ष्मी में पूजन विधि करते वक्त सर्वप्रथम श्री यंत्र और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे हृदय से दर्शन करो उसके बाद लक्ष्मी स्वतंत्र का पाठ करना चाहिए बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रुपए को कुमकुम और चावल चढ़कर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ ,शाम को कोई मीठी चीज बनाकर उसका प्रसाद रखो ,ना हो सके तो शक्कर भी चल सकता है फिर आरती करके 11 बार सच्चे हृदय से जय मां लक्ष्मी बोल बाद में 11 या 21 शुक्रवार या व्रत करने का दृढ़ संकल्प मां के सामने करो और जो भी आपकी मनोकामना हो वह पूरी करने को मां लक्ष्मी जी को विनती करो फिर मां का प्रसाद बांट दो और थोड़ा प्रसाद अपने लिए भी रखो अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और फिर  प्रसाद खाकर शुक्रवार का व्रत करो ,ना शक्ति हो तो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो अगर थोड़ी शक्ति भी ना हो तो दो बार भोजन कर सकते हो बाद में कटोरी में रखा रहना या रुपया ले लो, कलश का पानी तुलसी क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को डाल दो इसी प्रकार शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर होकर मनुष्य मालामाल हो जाता है संतान न हो उसे संतान के प्राप्ति होती है सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता है कुंवारी लड़की को मनभावन पति मिलता है

 

शीला यह सुनकर आनंदित हो गई फिर पूछा मां अपने वैभव लक्ष्मी व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है वैसे में अवश्य करूंगी किंतु उसकी उद्यापन विधि किस प्रकार करनी चाहिए यह भी कृपा करके मुझे सुनाई

 

मां जी ने कहा 11 या 21 जो भी मन्नत मानी हो उतरे शुक्रवार या वैभव लक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिए व्रत के आखिरी शुक्रवार को जो शास्त्रीय  विधि अनुसार उद्यापन विधि करनी चाहिए वह मैं तुझे बताती हूं आखिरी  शुक्रवार को खीर या नैवेद्य रखो पूजन विधि हर शुक्रवार को करते हैं वैसे ही करनी चाहिए पूजन विधि के पश्चात श्रीफल तोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके साहित्य संगम की वैभव लक्ष्मी व्रत की एक-एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए और सबको खीर  का प्रसाद देना चाहिए फिर धनलक्ष्मी स्वरूप वैभव लक्ष्मी स्वरूप महालक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें मां लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से मां की प्रार्थना करते वक्त यह कहे की हे धन लक्ष्मी मां ,हे  वैभव लक्ष्मी मां ,मैं सच्चे हृदय से आपका वैभव लक्ष्मी व्रत पूर्ण किया है तो है मां हमारी मां मनोकामना को पूर्ण करो हम सब का कल्याण करो ,जिसे संतान न हो उसे संतान देना, सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना,कवारी लड़की को मनभावन पति देना आपका यह चमत्कारी व्रत जो करें उसके सब विपत्ति दूर करना सबको सुखी करना है मां लक्ष्मी आपकी महिमा अपरंपार है

इस तरह मां की प्रार्थना करके मां लक्ष्मी जी का धर्म लक्ष्मी स्वरूप को भाव से वंदन करो

मांजी के पास से वैभव लक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय विधि सुनकर शीला भाव विभोर हो उठी उसे लगा मानो  सुख का रास्ता मिल गया है उसने आंखें बंद करके मन ही मन उसी समय संकल्प किया कि हे  वैभव लक्ष्मी मां ,मैं भी मांजी  के कहे मुताबिक श्रद्धा से शास्त्रीय विधि अनुसार वैभव लक्ष्मी व्रत 21 शुक्रवार तक करूंगी और व्रत की शास्त्री विधि अनुसार उद्यापन विधि करूंगी

 

शीला ने संकल्प करके आंखें खोली तो सामने कोई न था वहां वह विस्मित हो गई की मां जी कहां गए वह मांझी कोई दूसरा नहीं था साक्षात लक्ष्मी जी ही थी शीला लक्ष्मी जी की भक्ति थी इसलिए अपने भक्तों को रास्ता दिखाने के लिए मां लक्ष्मी जीदेवी का स्वरूप धारण करके शीला के पास आई थी

 

दूसरे दिन शुक्रवार था सवेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला मां  के सामने श्रद्धा से और पूरे भाव से जय मां लक्ष्मी,जय मां लक्ष्मी का मन ही मन  रटन  करने लगी सारा दिन किसी की चुगली नहीं की ,शाम हुई तब मुंह हाथ धोकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ गई, पहले  घर में पहले बहुत से सोने के गहने थे पर पतिदेव ने गलत रास्ते पर चढ़कर सब कुछ गवा दिया पर नाक की चुन्नी बच गई  नाक कीचुन्नी निकाल करके उसे धोकर कटोरी में रख दी सामने पट्टे  पर रूमाल रखकर मुट्ठी पर चावल का ढेर किया उसे पट्टे पर  कलश पानी भर के रखा उसका ऊपर चुन्नी वाली कटोरी राखी फिर मां जी ने कही थी शास्त्रीय  विधि अनुसार वंदन ,स्तवन, पूजा वगैरह किया और वह घर में थोड़ी शक्कर दिन प्रसाद के रूप में वैभव लक्ष्मी व्रत किया

 

यह प्रसाद पहले पति को खिलाया प्रसाद खाते ही पति का स्वभाव में फर्क आ गया उसे दिन उसने शीला को मारा भी नहीं सताया भी नहीं शीला को बहुत आनंद हुआ उसके मन में वैभव लक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बहुत बढ़ गई थी

 

शुक्रवार तक वैभव लक्ष्मी व्रत किया 21वे  शुक्रवार को मांजी के कहीं मुताबिक उद्यापन विधि करके साथ स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की साथ पुत्र के उपहार में दे दी फिर माता जी के धन लक्ष्मी स्वरूप की छवि को वंदन करके भाव से ही मन ही मां प्रार्थना करने लगी की है मां धनलक्ष्मी मैं आपका वैभव लक्ष्मी का व्रत करके मन्नत मानी थी वह व्रत आज पूर्ण किया है है मां मेरी हर व्यक्ति को दूर करो हम सब का कल्याण करो जिसे संतान देना  सौभाग्य स्त्री का सौभाग्य अखंड रखने, कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना, आपका यह चमत्कारी  लक्ष्मी व्रत जो भी करें उनके सभी विपत्ति  दूर करने सबको सुखी करना है मां लक्ष्मी आपकी महिमा अपरंपार है ऐसा बोलकर लक्ष्मी जी के धन लक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया

 

इस तरह शास्त्रीय  विधिपूर्वक शीला ने श्रद्धा से व्रत  किया और तुरंत ही उसे फल मिला उसका पति गलत रास्ते पर चला गया था वह तुरंत हीअच्छा आदमी हो गया मेहनत करके व्यवसाय करने लगा, मां लक्ष्मी जी के वैभव लक्ष्मी व्रत के प्रभाव से उसको ज्यादा मुनाफा होने लगा उसने तुरंत शीला के लिए गिरवी रखे,गहने छुड़ा लिए, घर में धन की बाढ़ सी आ गई, घर में पहले जैसे सुख शांति छा गई,  लक्ष्मी व्रत का प्रभाव देकर मोहल्ले के दूसरी स्त्रियों ने शास्त्रीय विधि पूर्वक  वैभव लक्ष्मी का व्रत करने लगी

 

हे माता लक्ष्मी आप जैसे शीला पर प्रसन्न  हुए, इस तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना, सबको सुख शांति देना 

जय धन लक्ष्मी मां  जय वैभव लक्ष्मी मां

 

व्रत कथा श्री मां लक्ष्मी की व्रत की महिमा भी अवश्य करनी चाहिए

जहां मेहमान की आवभगत करने  में आती है उनका भोजन कराया जाता है जहां सज्जनों की सेवा की जाती है जहां निरंतर भाव से भगवान की पूजा और अन्य धर्म कार्य किए जाते हैं जहां सत्य का पालन किया जाता है या गलत कार्य नहीं होते हैं जहां गायों की रक्षा होती है जहां दान देने के लिए डालने का संग्रह किया जाता है जहां क्लेश नहीं होता है जहां पत्नी संतोषी और विनय होती है ऐसी जगह पर मैं सदा निश्चल रहती हूं इसके सिवा की जगह पर कभी कगार दृष्टि  डालती हूं 

 

लक्ष्मी चालीसा का पाठ- 

 

दोहा ||

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास। मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥

॥ सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

 चौपाई ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥

॥ दोहा॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

मां लक्ष्मी का व्रत कथा संपूर्ण करने के पश्चात मां केआरती करके उनका गुणगान अवश्य करना चाहिए

 

ॐ जय लक्ष्मी माता,

मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसदिन सेवत,

हर विष्णु विधाता ॥

 

उमा, रमा, ब्रम्हाणी,

तुम ही जग माता ।

सूर्य चद्रंमा ध्यावत,

नारद ऋषि गाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

दुर्गा रुप निरंजनि,

सुख-संपत्ति दाता ।

जो कोई तुमको ध्याता,

ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

 

तुम ही पाताल निवासनी,

तुम ही शुभदाता ।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,

भव निधि की त्राता ॥

 

जिस घर तुम रहती हो,

ताँहि में हैं सद्‍गुण आता ।

सब सभंव हो जाता,

मन नहीं घबराता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

 

तुम बिन यज्ञ ना होता,

वस्त्र न कोई पाता ।

खान पान का वैभव,

सब तुमसे आता ॥

 

तुम बिन यज्ञ ना होता,

वस्त्र न कोई पाता ।

खान पान का वैभव,

सब तुमसे आता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

 

शुभ गुण मंदिर सुंदर,

क्षीरोदधि जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन,

कोई नहीं पाता ॥

 

महालक्ष्मी जी की आरती,

जो कोई नर गाता ।

उँर आंनद समाता,

पाप उतर जाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

 

ॐ जय लक्ष्मी माता,

मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसदिन सेवत,

हर विष्णु विधाता ॥