शनि देव की व्रत कथा विधि चालीसा एवं व्रत करने के लाभ

शनि देव की व्रत कथा विधि चालीसा एवं व्रत करने के लाभ

शनि देव की व्रत कथा विधि चालीसा एवं व्रत करने के लाभ

 

 शनिदेव भगवान एक ऐसी भगवान है जिन्हें न्याय देवता कहा जाता है न्याय के देवता की उपाधि उन्हें भगवान भोलेनाथ ने दी है जो भी पुरुष अथवा स्त्री शनिवार के व्रत की कथा का सुमिरन करते हैं व्रत उपवास करते हैं उन्हें भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का व्रत किया जाता है और व्यक्ति शनि दोष से बचने के लिए और उन्हें शांत करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार से उपाय करता है

शनिवार का व्रत करते समय शनिवार की व्रत कथा का पाठ श्रवण मनन अवश्य ही करना चाहिए

एक बार सभी नौ ग्रहों सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में बहस हो गई। कौन सबसे बड़ा है? आपस में लड़ने के बाद सभी देवराज इंद्र के पास पहुंच गए। इंद्र असमंजस की स्थिति में निर्णय नहीं दे पाएं। परन्तु उन्होंने सभी ग्रहों को सुझाव दिया कि पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य ही इसका फैसला कर सकते हैं क्योंकि वो बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं।

सभी पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य के पास गए और अपने आने का कारण बताया। राजा उनकी समस्या को सुनकर बहुत परेशान हो गए। उनका चिंतित होना लाजिमी था क्योंकि जिसको भी किसी से छोटा बताया तो वही गुस्सा कर जाएगा। राजा के काफी सोच-विचार के बाद उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन का निर्माण करवाया। उन्हें उपर्युक्त क्रम में रख दिया गया।

सबसे निवेदन किया गया कि क्रमानुसार सिंहासन पर आसन ग्रहण करें। शर्त रखा गया कि जो सबसे अंतिम में सिंहासन पर आसन ग्रहण करेगा, वही सबसे छोटा माना जाएगा। जिसकी वजह से शनि देव सबसे बाद में आसन प्राप्त कर सके और सबसे छोटे कहलाए। क्रोध के आवेश में आकर शनिदेव ने सोचा कि राजा ने यह सब जानबूझ कर किया है। कुपित होकर राजा से कहा कि राजा तू मुझे नहीं जानता। सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीने दो दिन, मंगल डेढ़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, बुद्ध और शुक्र एक-एक महीने विचरण करते हैं, लेकिन मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हूं। मैंने बड़े-बड़े का विनाश किया है। श्री राम की साढ़ेसाती आने पर उन्हें जंगल-जंगल भटकना पड़ा और रावण की आने पर लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पड़ा।

क्रोधित शनिदेव ने राजा से कहा कि अब आपको सावधान रहने की जरूरत है। इतना कहकर शनि देव कुपित अवस्था में वहां से चले गये।

समय गुजरता गया और कालचक्र का पहिया घूमते हुए राजा की साढ़ेसाती आ ही गई। तब शनि देव घोड़ों का सौदागर बनकर राजा के राज्य में गए। उनके साथ अच्छे नस्ल के बहुत सारे घोड़े थे। जब राजा को सौदागर के घोड़ों का पता चला तो अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने के लिए भेजा। अश्वपाल ने कई अच्छे घोड़े खरीदे, इसके अलावा सौदागर ने उपहार स्वरुप एक सर्वोत्तम नस्ल के घोड़े को राजा की सवारी हेतु दिया।

राजा विक्रमादित्य जैसे ही उस घोड़े पर बैठे वह सरपट वन की ओर भागने लगा। जंगल के अंदर पहुंच कर वह गायब हो गया। भूखा-प्यास की स्थिति में राजा जंगल में भटकते रहे। अचानक उन्हें एक ग्वाला दिखाई दिया, जिसने राजा की प्यास बुझाई। राजा ने प्रसन्नता में उसे अपनी अंगूठी देकर नगर की तरफ चले गए। वहां एक सेठ की दूकान पर पहुंच कर उन्होंने जल पिया और अपना नाम वीका बताया। भाग्यवश उस दिन सेठ की खूब आमदनी हुई। सेठ खुश होकर उन्हें अपने साथ घर लेकर गया।

सेठ के घर में खूंटी पर एक हार टंगा था, जिसको खूंटी निगल रही थी। कुछ ही देर में हार पूरी तरह से गायब हो गई। सेठ वापस आया तो हार गायब था। उसे लगा की वीका ने ही उसे चुराया है। सेठ ने वीका को कोतवाल से पकड़वा दिया और दंड स्वरूप राजा उसे चोर समझ कर हाथ-पैर कटवा दिया। अंपग अवस्था में उसे नगर के बाहर फेंक दिया गया। तभी वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसको वीका पर दया आ गई। उसने वीका को अपनी गाड़ी में बैठा लिया। वीका अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा।

कुछ समय पश्चात राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। वर्षा काल आने पर वीका मल्हार गाने लगा। एक नगर की राकुमारी मनभावनी ने मल्हार सुनकर मन ही मन प्रण कर लिया कि जो भी इस राग को गा रहा है, वो उसी से ही विवाह करेगी। उन्होंने दासियों को खोजने के लिए भेजा पंरतु वापस आकर उन सभी ने बताया कि वह एक अपंग आदमी है। राजकुमारी यह जानकर भी नहीं मानी और अगले दिन ही वह अनशन पर बैठ गयीं। जब लाख समझाने पर राजकुमारी नहीं मानी, तब राजा ने उस तेली को बुलावा भेजा और वीका से विवाह की तैयारी करने के लिए कहा गया।

वीका से राजकुमारी का विवाह हो गया। एक दिन वीका के स्वप्न में शनि देव ने आकर कहा कि देखा राजन तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। राजा ने क्षमा मांगते हुए हाथ जोड़कर कहा कि हे शनि देव! जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ऐसा दुख मत देना। शनि देव इस विनती को मान गये और कहा कि मेरे व्रत और कथा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। जो भी नित्य मेरा ध्यान करेगा और चींटियों को आटा डालेगा, उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी।

शनि देव ने राजा को हाथ पैर भी वापस दिए। दूसरे दिन जब सुबह राजकुमारी की आंख खुली तो वह आश्चर्यचकित हो गई। वीका ने मनभावनी को बताया कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। मनभावनी खुशी से फूले नहीं समा रही थी। राजा और नगरवासी सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। सेठ ने जब यह सुना तो वह पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा कि यह सब शनि देव के कोप का प्रभाव था और इसमें किसी का कोई दोष नहीं है। सेठ ने निवेदन करते हुए कहा कि मुझे शांति तभी मिलेगी, जब आप मेरे घर चलकर भोजन करेंगे। सेठ ने कई प्रकार के व्यंजनों से राजा का सत्कार किया। जब राजा भोजन कर रहे थे, तभी जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी।

सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया और अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवेदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। राजा अपनी दोनों रानियों मनभावनी और श्रीकंवरी को लेकर उज्जैन नगरी लौट आएं। सारे नगर में दीपमाला और खुशी मनायी। राजा ने घोषणा करते हुए कहा कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, लेकिन असल में वही सर्वोपरि हैं। तब से सारे राज्य में शनि देव की पूजा और कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा के बीच खुशी और आनंद का वातावरण बन गया। शनि देव के व्रत की कथा को जो भी सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं।

शनिवार के व्रत में शाम को क्या खाया जाता है?
शनिवार का व्रत करने वाले को पूरे दिन फलाहार करना चाहिए. इस व्रत में दिन में अन्न नहीं खाना चाहिए. शाम के समय उड़द की दाल की खिचड़ी खाकर व्रत खोलने चाहिए. व्रत के अगले दिन सुबह नहाकर पूजा करने के बाद ही कुछ खाना चाहिए, वरना व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है

आक का फूल नीले रंग का भी होता है जो, शनिदेव को चढ़ाना काफी शुभ माना जाता है। आक के फूल को मदार का फूल भी कहा जाता है। आक के फूल को भी शनिदेव के चरणों पर चढ़ाएं। इससे भी आपको शुभ फल मिलेगा।

यदि शनि दोष के लक्षण क्या है?

आप अपने जीवन में लगातार बाधाओं और देरी का सामना करते हैं, तो यह कमजोर शनि का संकेत हो सकता है। ये चुनौतियाँ करियर की असफलताओं से लेकर रिश्ते की कठिनाइयों तक हो सकती हैं।शनि दोष के लक्षण क्या है?

व्यक्ति पर कोर्ट केस और झूठा आरोप लग सकता है, जिसके कारण मनुष्य कई तरह की कष्टों से जूझता हैं. – शराब, जुआ और अन्य गंदी आदतें भी शनि दोष का संकेत हैं. काम में अड़चने आना, कर्ज का बोझ होना, घर में आग लगना, मकान बिकना भी शनि दोष के लक्षण हैं.

शनिदेव उन लोगों से जल्दी प्रसन्न होते हैं जो शराब और मांसाहारी भोजन का सेवन नहीं करते हैं । अच्छे परिणाम की उम्मीद के लिए आप बरगद के पेड़ पर मीठा दूध चढ़ा सकते हैं। शनिवार का दिन भगवान हनुमान से भी जुड़ा हुआ है। हर शनिवार को ‘हनुमान चालीसा’ का जाप करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं

 चालीसा का पाठ किसी मंदिर में, पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर करेंगे तो बहुत शुभ रहेगा। आप चाहें तो घर में भी शाम के समय शनि चालीसा का पाठ कर सकते हैं।

शनिदेवचालीसा का पाठ

दोहा
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।
चौपाई
जयति-जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।

परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
तृणहंू को पर्वत करि डारत।।राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

शनि देव स्तोत्र

जिनके शरीर का वर्ण कृष्ण नील तथा भगवान् शंकर के समान है, उन शनि देव को नमस्कार है। जो जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप हैं, उन शनैश्चर को बार-बार नमस्कार है। जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस-हीन तथा जिकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को नमस्कार है। जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट और भयानक आकार है, उन शनैश्चर देव को नमस्कार है।।
जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु सूके शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार प्रणाम है। हे शने ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप घोर रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है. वलीमूख ! आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन ! भास्कर-पुत्र ! अभय देने वाले देवता ! आपको प्रणाम है। नीचे की ओर दृष्टि रखने वाले शनिदेव ! आपको नमस्कार है। संवर्तक ! आपको प्रणाम है। मन्दगति से चलने वाले शनैश्चर ! आपका प्रतीक तलवार के समान है, आपको पुनः-पुनः प्रणाम है। आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सदा सर्वदा नमस्कार है। ज्ञाननेत्र ! आपको प्रणाम है। काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव आपको नमस्कार है। आप सन्तुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते हैं। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग- ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं। देव मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ।