बृहस्पतिवार/गुरुवार व्रत की कथा

बृहस्पतिवार/गुरुवार व्रत की कथा

बृहस्पतिवार/गुरुवार व्रत की कथा-

बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। और इस दिन देव गुरु बृहस्पति की भी पूजा की जाती है। इस दिन लोग विधि विधान से पूजा, उपवास करके कुछ नियमों का पालन करके भगवान की आशीष अनुकंपा प्राप्त करते हैं।

यह व्रत अत्यंत ही फलदाई होता है जो भी मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान बृहस्पति की पूजा अर्चना करता है उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और ईश्वर की अनुकंपा भी उस पर सदैव बनी रहती है।

इस दिन व्रत करने से कुछ नियमों का पालन भी अवश्य करना चाहिए जिनका करने से यह व्रत सफल और पूर्ण होता है।

बृहस्पतिवार का व्रत करने से पहले कुछ नियमों का ध्यानपूर्वक पालन अवश्य ही करना चाहिए

1-सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने नित्य कर्मों से निवृत होकर केले के पेड़ के जड़ में  भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति अथवा फोटो को स्थापित करके उन्हें प्रणाम करना चाहिए

2- भगवान से अपने निवास स्थान से आपके यहां पर आमंत्रित करने के लिए उनका आवाहन करना चाहिए और सच्चे हृदय से उनसे प्रार्थना करकेआशीष लेनी चाहिए।

3-एक छोटा सा पीला वस्त्र भगवान की मूर्ति पर अवश्य चढ़ाना चाहिए।

4-भगवान को गुड और धुली हुई चने की दाल का केले की जड़ में भोग लगाया जाता है और साथ ही साथ काला मुनक्का भी भोग में लगाया जाता है।

5-पूजा की थाली में दिया,धूप, अगरबत्ती,एक लोटे में पानी और उसमें हल्दी डालकर के रख के तैयारी की जानी चाहिए ,पूजा के बाद इससे केले की जड़ या तुलसी के पौधे में डालना चाहिए ।

6-यह व्रत आप किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को रख सकते हैं मन ही मन बस सच्चे हृदय से भगवान का नाम स्मरण करके संकल्प लेकर के इस व्रत को प्रारंभ करना चाहिए

7-भगवान बृहस्पति को केले का भोग मुख्य रूप से लगाया जाता है अतः इस दिन केले को स्वयं खाना नहीं चाहिए और पीली वस्तुओ का दान भी किया जाता है 

बृहस्पतिवार व्रत की कथा-

बृहस्पतिवार के व्रत की कथा इस प्रकार है 

प्राचीन समय में भारतवर्ष में  रानी और एक प्रतापी राजा राज्य करता था वह सदैव गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था लेकिन यह सब बातें उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी वह ना तो किसी गरीब को कोई दान देती थी और ना ही किसी भगवान की कोई पूजा अर्चना करती थी और राजा से भी यह सब कार्य करने को मना करती थी

एक दिन की बात है कि राजा स्वयं तो शिकार खेलने वन में गए हुए थे और रानी महल में अकेली थी उसी समय भगवान बृहस्पति देव एक साधु के वेश के रूप में राजा के महल में भिक्षा लेने के लिए आए और उन्होंने रानी से भिक्षा मांगी तो बदले में रानी ने उन्हें भिक्षा देने से इनकार कर दिया और बोली “हमसे तो घर का ही कार्य समाप्त नहीं होता हैऔर मैं इस दान पुण्य से बहुत तंग आ गई हूं अब आप ही ऐसा कोई उपाय बताएं जिससे यह सब कार्य मुझे ना करना पड़े,यह सारा धन नष्ट हो जावे और में आराम से रह सकू 

साधु महाराज ने रानी की ऐसी बातें सुनकर के बोला कि तुम बहुत ही ज्यादा विचित्र हो, धन और संतान की इच्छा तो पापी भी करते हैं यदि तुम्हारे पास धन अधिक है तो भूखे मनुष्यों को भोजन करो, प्याऊ लगवाओ,मुसाफिरों के लिए धर्मशाला बनवाओ ।निर्धन के कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाओ,जिससे तुम्हारा यश इस संसार में प्रसिद्ध होवे ।

परंतु रानी का साधु महाराज की बातों का कोई भी असर नहीं पड़ा वह बोली हमसे यह सब कुछ कार्य नहीं होता है

इस पर साधु महाराज ने कहा कि यदि तुम्हारी ऐसा ही इच्छा है तो ऐसा ही होगा अब मैं तुम्हें बताता हूं कि बृहस्पतिवार के दिन तुम्हें क्या करना है बृहस्पतिवार के दिन अपने घर को गोबर से लीपना ,अपने सिर को धोते हुए स्नान करना धोबी के यहां कपड़े धोने के लिए देना ,ऐसा सात बृहस्पतिवार करने से ही आपका समस्त धन नष्ट हो जाएगा ऐसा कहते हुए साधु महाराज वहां से अंतरध्यान हो गए

साधु के कहां अनुसार रानी ने उन समस्त कार्यो को किया सिर्फ तीन बृहस्पतिवार बीते थे कि उसकी समस्त धन संपत्ति नष्ट हो गई और भोजन के लिए दोनों समय तरसने लगे

तब एक दिन राजा ने रानी से कहा कि तुम यहीं पर रहो मैं दूसरे देश पर काम करने के लिए जाता हूं क्योंकि यहां पर तो मुझे सभी लोग जानते हैं देश चोरी परदेश भेख बराबर है, ऐसा कहकर राजा प्रदेश चला गया वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लता और शहर में बेचता इस तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगा इधर राजा के जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगे

एक बार जब रानी और दासी को 7 दिन बिना भोजन के रहना पड़ा तो रानी ने अपनी दासी से कहा कि  दासी पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है जा, उससे तू ५ सेर बेझड़ मांग के लेकर आ,आज जैसे कुछ समय के लिए हमारी गुजर बसर हो जाएगी दासी ऐसा सुनकर रानी की बहन के पास गई,किंतु उसे दिन गुरुवार था तो जैसे ही दासी रानी के बहन के समक्ष गई,उसकी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया,जिससे दासी बहुत ज्यादा दुखी हो गई और सारी बात आकर रानी को सुनाने लगी

जब रानी की बहन को यह पता चला कि उसकी बहन की दासी गई थी और वह बात नहीं कर पाई तोअपनी बहन के घर आकर के बोली कि मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी किंतु जब तुम्हारी दासी आई थी तब मैं उससे बात ना कर सकी, क्योंकि जब कथा होती है तो ना उठते हैं, ना बात करते हैं,अब बताओ दासी क्यों गई थी?

इस पर रानी बोली की बहन तुमसे कुछ भी छुपा हुआ नहीं है हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था ऐसा कहते कहते रानी की आंखें भर आई ,और उसने बताया कि उन्होंने सात रोज से कुछ भी खाना नहीं खाया है

रानी की बहन इस पर बोले कि बृहस्पति भगवान सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं तुम अपने मन में उनको याद करके देखो कहीं घर में अनाज ही ना रखा हो तो पहले रानी को विश्वास नहीं हुआ लेकिन बहन के बोलने पर जैसे ही दासी को अंदर भेजा तो उसने देखा कि एक अनाज से भरा हुआ घड़ा रखा हुआ है या देखकर दासी को बहुत ही हैरानी हो गई

इस पर दासी ने रानी से कहा कि है कि हम तो रोज ही भूखे रहते है, जब बिना व्रत किए हुए हमें अन्न मिल सकता है तो क्यों ना इसे व्रत की विधि पूछ ली जाए और हम भी भगवान बृहस्पति के व्रत को करें

इस पर रानी की बहन ने बताया कि बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन किया जाता है दीपक जलते हैं कथा सुनते हैं और पीला ही भोजन करते हैं इससे भगवान बृहस्पति देव बहुत ही प्रसन्न होते हैं

7 दिन के बाद जब गुरुवार आया तो रानी और दासी ने व्रत रखा, घुड़साल  में जाकर के चना और गुड़ बीन लाई , फिर उन्होंने केले की जड़ पर भगवान विष्णु का पूजन किया लेकिन अब उन्हें चिंता थी कि पीला भोजन कहां से आवे क्योंकि उन्होंने व्रत रखा था इसीलिए भगवान उन पर बहुत प्रसन्न थे दो थालों में सुंदर भोजन लेकर के भगवान दासी को दिए भोजन पाकर रानी और दासी बहुत प्रसन्न हुई

इसके पश्चात वह लोग प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखने और भगवान बृहस्पति देव का पूजन करने लगते इस प्रकार करते हुए उनके पास प्रचुर संपत्ति आ गई लेकिन रानी फिर उसी प्रकार से आलस  करने लगी ,इस पर दासी बोली कि पहले भी तुम इसी प्रकार से आलस  करती थी और तुम्हें धन को रखने में कष्ट होता था इसी कारण सब धन नष्ट हो गया अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से फिर से धन मिला है तो तुम फिर उसे उसी प्रकार से आलस  कर रही हो

जो भी धन हमें भगवान बृहस्पति की कृपा से प्राप्त हुआ है उसे हमें भूखे मनुष्यों को भोजन करना,कुंवारी कन्याओं का विवाह करना ,कुआं, प्याऊ लगवाना, यह सब धन शुभ कर्मों में खर्च करना चाहिए जिससे कुल का यश बढ़ेगा और स्वर्ग की प्राप्ति होगी दासी की बात मानकर रानी वैसा ही करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा

एक दिन इसी प्रकार राजा दुखी होकर जंगल में एक पेड़ के नीचे आसन लगा के  बैठा हुआ था और अचानक उसे वन में एक साधु प्रकट हुए साधु वेश में वह स्वयं बृहस्पति देव ही थे उसे लकड़हारे के सामने आकर के बोले कि तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हुए हो

लकड़हारे ने दोनों हाथ जोड़ प्रणाम करके भगवान को उत्तर दिया महात्मा जी आप तो सब कुछ जानने वाले हो यह कहकर रोने लगा और उसने अपनी सारी बात बताइए

इस पर महात्मा जी ने कहा कि तुम दुख करना त्याग कर दो ,तुम्हारी स्त्री ने अब से बृहस्पतिवार का व्रत करना प्रारंभ कर दिया है जिसके कारण रुष्ट हुए भगवान अब मान गए हैं और तुम समस्त चिताओं को भूल करके सारे कष्ट भगवान तुम्हारे दूर कर देंगे और तुम्हें पहले से भी ज्यादा अधिक संपत्ति प्रदान करेंगे

 तुम बृहस्पतिवार के दिन भगवान बृहस्पति की कथा करो ,अपने पैसों से मुनक्का और चना लेकर के प्रसाद तैयार करो कथा के पश्चात अपने सारे परिवार और सुनने वालों के बीच में यह प्रसाद तुम्हें ग्रहण करना है और उन्हें बांटना भी  है

साधु के ऐसे वचन सुनकर लकड़हारा बोला कि मेरे पास इतने पैसे नहीं है जिससे मैं भोजन करने के उपरांत कुछ बचा सकू, और मैं रात्रि में अपनी स्त्री को सपने में व्याकुल भी देखा है मेरे पास कुछ भी नहीं है जिससे मैं उसके कुछ खबर मंगा सकू 

इस पर साधु महाराज ने कहा कि तुम चिंता मत करो,बृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लड़कियां लेकर शहर को जो तुमको रोज से दुगना धन प्राप्त होगा जिसे तुम भली भांति भोजन कर लोगे और बृहस्पति देव की पूजा सामग्री भी आ जाएगी

ऐसा कहकर के साधु अंतर ध्यान हो गया, धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा फिर वही बृहस्पतिवार का दिन आया, लकड़हारा जंगल में से लकड़ी काटता हुआ शहर में लकड़ी बेचने के लिए गया उसे उस दिन अन्य दिन से अधिक पैसा मिला ,राजा ने चना, गुड़ लाकर बृहस्पति वार का व्रत किया जिससे उसके समस्त क्लेश धीरे-धीरे दूर होने लगे, लेकिन जब दोबारा बृहस्पतिवार आया तो वह फिर से उपवास करना भूल गया

उसी दिन उसे नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था और उसने शहर में यह घोषणा कर दी थी कि सभी लोगउनके यहां भोजन करने आए कोई भी अपने घर में भोजन ना बनाएगी ना आंख जलाएगा और जो यह आजा को नहीं मानेगा उसे फांसी की सजा दी जाएगी इस तरह की घोषणा संपूर्ण नगर में करवा दी गई

राजा की आज्ञा सुनकर शहर के सभी लोग राजा के यहां भोजन करने के लिए गए किंतु लकड़हारा कुछ देर से पहुंच इसलिए राजा उसको अपने साथ घर ले गया और अपने शादी भोजन करने लग गया,इतने में उसकी रानी की दृष्टि उसे खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था वह उसे दिखाई नहीं दिया,इस पर  रानी को संदेह हुआ कि इस मनुष्य ने ही रानी के हार को चुरा लिया है और उसे समय सिपाहियों को बुलवाकर के उसे कारागार में डलवा दिया

जब लकड़हारा कारागार में पड़ गया तो वह बहुत दुखी होकर विचार करने लगा कि कौन से कर्मों की सजा से ऐसा दुख प्राप्त हुआ है इस समय साधु को याद करने लगा जो कि उसे जंगल में मिला था उसे समय भगवान बृहस्पति देव ने साधु के रूप में प्रकट हुए और उसकी दशा को देखकर कहने लगे कि तूने भगवान बृहस्पति की कथा नहीं की जिसके कारण तुझे यह दुख प्राप्त हुआ है अब चिंता मत करना बृहस्पतिवार के दिन कारागार के दरवाजे पर तुझे चार पैसे पड़े मिलेंगे उनसे तो बृहस्पति देव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे 

साधु महाराज के खाने के उपरांत बृहस्पतिवार के दिन उसे चार पैसे मिले,लकड़हारे ने इस प्रकार से भगवान बृहस्पति की कथा की और इस रात्रि को बृहस्पति देव ने राजा के स्वप्न में आकर उससे कहा कि हे राजा ,जिस  तूने जिस आदमी को कारागार में डाला है वह निर्दोष है वह राजा है उसे छोड़ देना ,रानी का हर इस कोठी पर लटका हुआ है अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे राज्य को नष्ट कर दूंगा

इस तरह रात्रि में स्वप्न देखकर राजा प्रातः काल उठा और खूंटी पर हार टंगा हुआ देखकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी और उसे बहुत सारा धन आदि देखकर के विदा कर दिया,बृहस्पति देव की आज्ञा अनुसार लकड़हारा अब अपनी नगर को चल दिया

राजा जैसे ही अपने नगर के निकट पहुंचा तो उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ नगर में पहले से अधिक बाग तालाब हुए और बहुत धर्मशाला, मंदिर आदि बने हुए थे राजा ने पूछा यह किसका बाग और धर्मशाला है तो नगर के सब लोग कहने लगे कि यह सब रानी और दासी के हैं तो राजा को बहुत आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया

जब रानी ने यह खबर सुनी की राजा आ रहे हैं तो उसने अपनी दासी से कहा कि  दासी, देख ,,हमको राजा कितनी बुरी हालत में छोड़ गए थे हमारी ऐसी हालत देखकर लौट न जाए इसलिए तो दरवाजे पर खड़ी रहना ,आज्ञानुसार  दरवाजे पर खड़ी हो गई ,राजा आए तो उसे अपने साथ अंदर ले आई तब राजा ने क्रोध करके अपनी रानी से पूछा कि यह सब धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है? तब उन्होंने बताया कि ये सब धन उन्हें बृहस्पति देव के भगवान की कृपा से प्राप्त हुआ है

इसके पश्चात राजा ने निश्चय के साथ रोज बाद  तो सभी बृहस्पतिवार का पूजन करते हैं परंतु मैं प्रतिदिन दिन में तीन बार कहानी  किया करूंगा, अब राजा के दुपट्टे में सब समय चने की दाल बंधी रहती थी और वह दिन में तीन बार कहानी करते थे

एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां चलते हैं और इस तरह निश्चय करके राजा घोड़े पर सवार होकर के अपनी बहन के यहां चला गया मार्ग में उसने देखा कि कुछ लोग मुर्दे को लिए जा रहे हैं उन्हें रोक कर राजा कहने लगा कि अरे भाइयों ,मेरी भगवान बृहस्पति देव की कहानी सुन लो

वह बोले देखो, एक, तो हमारा आदमी मर गया है और इसको अपनी कथा की पड़ी है परंतु कुछ आदमी बोले, अच्छा ठीक है हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे ,राजा ने दाल निकाल और जो कथा आदि हुई तो मुर्दा हिले लग गया और जब कथा समाप्त हो गई तो राम-राम करके मनुष्य खड़ा हो गया

आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला, राजा ने उसे देखकर उसे बोला, अरे भैया, तू मेरे बृहस्पतिवार की कथा सुन लो किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनुँगा  तब तक चार हरिया जोत लूंगा,जा,अपनी कथा किसी और को सुनना इस तरह राजा आगे चलने लगा राजा के हटते ही बल पछाड़  खाकर गिर गए और किस के पेट में बहुत जोर से दर्द होने लगा

उसे मैं उसकी मां रोटी लेकर आई उसने जब यह देखा तो उसने अपने पुत्र से सब हाल पूछा बेटे ने सभी हाल कह दिया तो बुढ़िया दौड़ी दौड़ी घुड़सवार के पास आई और उससे बोली कि मैं तेरी कथा सुनूंगी तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर ही कहना राजा ने बुढ़िया के कहने पर खेत पर जाकर कथा कहानी जिसके सुनते ही बल पछाड़ खाकर उठ खड़े हुए और किसान  के पेट का दर्द भी बंद हो गया

राजा जैसे ही अपनी बहन के घर पहुंच बहन ने भाई की खूब मेहमानी की दूसरे रोज प्रातः काल जैसी जगह तो देखना सब लोग भोजन कर रहे हैं

राजा ने अपनी बहन से कहा कि ऐसा कोई मनुष्य है ?जिसने भोजन न किया हो, मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन ले ,बहन बोली ,कि भैया यह देश ऐसा यह पहले लोग यहां भोजन करते हैं बाद में कोई अन्य काम करते हैं अगर कोई पड़ोस में हो तो देखा हूं और वह ऐसा कहते हुए पड़ोस में देखने के लिए चली गई

परंतु उसे कोई भी ऐसा व्यक्ति ना मिला जिससे भोजन न किया हो अथवा एक कुम्हार के घर में गई जिसका लड़का बीमार था और उसे मालूम हुआ कैसे 3 दिन से कोई भी भोजन नहीं किया है रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुमार से कहा, वह तैयार हो गया। राजा ने  घर जाकर बृहस्पतिवार की कथा की जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया ।अब इससे तो राजा के प्रशंसा होने लगी ।

एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा कि बहन हम अपने घर को जाएंगे तुम भी तैयार हो जाओ । राजा की बहन अपनी सास से बोली तब इसके पश्चात सास ने कहा ,हां  तू चली जा, परंतु अपने लड़कों को मत लेकर जाना, क्योंकि तेरे भाई की कोई संतान नहीं है।

बहन ने अपने भैया से कहा है भैया मैं तो चलने के लिए तैयार हूं लेकिन कोई संतान नहीं जाएगी,इस पर राजा बोला जब कोई बालक ही नहीं चलेगा ,तब तुम चलकर क्या करोगी ?बड़े दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया राजा ने अपनी रानी से कहा कि हम निर्वंशी राजा है हमारा मुंह देखने का धर्म नहीं है उदास होकर कुछ भी भोजन आदि नहीं किया ।

रानी बोली की  बृहस्पति देव ने हमें सब कुछ दिया है । बस हमें संतान अवश्य देंगे ।इस रात्रि को बृहस्पति देव ने राजा से सपने में कहा ,कि हे राजा उठ, सभी सोच को अब त्याग दे, तेरी रानी गर्भ  से है राजा को  यह बात सुनकर बड़ी खुशी हुई

9 महीने से उसके गर्भ  से एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई ,तब राजा बोला कि हे रानी स्त्री बिना भोजन के रह सकती है पर बिना कहे  नहीं रह सकती है जब मेरी बहन यहां आए तो तुम उसे कुछ मत कहना रानी ने सुनकर हां कर दिया

तब राजा की बहन ने शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुशी और बधाई लेकर अपने भाई के यहां आए तब रानी ने कहा घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चली आई ।राजा की बहन बोली भैया में इस प्रकार ना कहती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती ?

बृहस्पति देव ऐसे ही है जैसे जिसकी मन में कामना रहती है सभी को पूर्ण करते हैं तो सदभावना पूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढता है सुनता है और दूसरों को सुनाता है बृहस्पति देव उसके सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं

भगवान बृहस्पति देव उसके सदैव रक्षा करते हैं संसार में जो मनुष्य सद्भावना से भगवान का सच्चे हृदय से पूजन पाठ करते हैं भगवान उनके स्वरूप मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं

जैसे सच्ची भावना से रानी और राजा ने उनकी कथा कासुनाया और पूजा अर्चना की और जिस भगवान बृहस्पति देव ने उनकी समस्त इच्छाओं को पूर्ण किया इसी प्रकारभगवान जो भी इस व्रत का पालन करें उनकी सब मनोकामनाओं को तुम पूर्ण करना , इसीलिए कथा सुनने के पश्चात प्रसाद देकर जाना चाहिए ।ह्रदय में उनका वर्णन करते हुए जयकारा बोलना चाहिए 

बोलो बृहस्पति भगवान की जय ।  विष्णु भगवान की जय ।।

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 बृहस्पति देव की कथा 2

प्राचीन समय में एक ब्राह्मण रहता था और वह बहुत ही अधिक निर्धन था उसके कोई भी संतान नहीं थी और उसकी स्त्री भी बहुत ही  मलिनता  के साथ रहती थी वह न स्नान करती, न हीं किसी देवता का पूजन करती । इसे ब्राह्मण देवता बड़े दुखी थे बेचारे बहुत कुछ कहते थे किंतु उसका कोई परिणाम नहीं निकला, भगवान की कृपा से एक दिन ब्राह्मण की स्त्री को कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ 

और वह कन्या धीरे-धीरे अपने पिता के घर में बड़ी होने लगी और प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु का जाप और बृहस्पतिवार का व्रत करने लगी अपनी पूजा पाठ को संपन्न करके वह प्रतिदिन विद्यालय जाती थी तो अपनी मुट्ठी में जौ  भर के ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालते जाती थी जौ स्वर्ण के हो जाते और स्कूल से लौटते समय उनका घर में बीन  कर ले आई थी

एक दिन में बालिका सूप में उसे सोने के जौ  को साफ कर रही थी उसके पिता ने देख लिया और कहा है बेटी सोने के जौ  को सपना के लिए सोने का सूप भी होना चाहिए, दूसरे दिन बृहस्पतिवार था इस कन्या ने व्रत रखा था और बृहस्पति देव से प्रार्थना करके कहा,

“ कि यदि मैंने भगवान आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो “ बृहस्पति देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली रोजाना की तरह वह जौ  फैला ती हुई अपने स्कूल की तरफ जाने लगी, और जब लौट कर आती तो  बिन कर लाती थी 

 बृहस्पति देव की कृपा से उसे सोने का सूप मिला उसे वह  घर ले आई और उसमें जब साफ करने लगी परंतु उसकी मां का वही ढंग रहाएक दिन व कन्या सोने के सूप में जॉब को साफ कर रही थी उसी समय उसे शहर का राज्य पुत्र वहां से होकर निकला, इस कन्या के रूप और कार्य को देखकर मोहित हो गया तथा अपने घर जाकर भोजन और जल त्याग कर उदास होकर लेट गया

राजा को जब इस बात का पता लगा तो उसने प्रधानमंत्री के साथ उसके पास गए और बोले , ‘बेटा तुम्हें किस बात का कष्ट है ?किसी अगर तुम्हारा अपमान किया है अथवा कोईऔर कारण है? सो कहो मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम प्रसन्न रहो ।अपने पिता की बातें जब राजकुमार ने सुनी ,तो उन्होंने कहा कि उनका  किसी ने अपमान नहीं किया है किंतु वह उसे लड़की से विवाह करना चाहते हैं जो सोने के सूप  में जौ  को साफ कर रही थी यह सुन राजा आश्चर्य में पड़ गया और बोल बेटा इस शरीर कन्या को पता तुम ही लगाओ, मैं तुम्हारा उसके साथ विवाह अवश्य ही करवा दूंगा। राजकुमार ने उसे लड़की के घर का पता लगाया जब मंत्री उसे लड़की के घर पर गए तो ब्राह्मण देवता को सभी हाल बतलाया ब्राह्मण देवता राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गए ।और विधि विधान के अनुसार ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया 

घर से जाते ही ब्राह्मण के घर में पहले की तरह गरीबी  का निवास हो गया अब भोजन के लिए अन्य बड़ी मुश्किल से मिलता था एक दिन दुखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गए, बेटी ने पिता की बुरी अवस्था को देखकरऔर अपनी मां का हाल पूछा,ब्राह्मण ने सभी हाल बतलाया और ब्राह्मण को  इस बार कन्या ने बहुत सारा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय  तो सुखपूर्वक व्यतीत हुआ , कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गए अब  ब्राह्मण अपनी कन्या के यहां गया और सारा हाल कहा तो लड़की बोली , पिताजी आप माता जी को यहां ले आये  मैं उसे विधि बता दूंगी जैसे गरीबी दूर हो जाएगी वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ देकर पहुंचे तो अपनी मां को समझने लगी, तुम प्रातः काल सबसे पहले स्नान आदि करके विष्णु भगवान की पूजा करो सब दुःख दर्द  दूर हो जाएगी ,परंतु उसकी परंतु उसकी मां ने एक भी बात नहीं सुनी और प्रातः काल उठकर अपने बच्चों का जूठन खा लिया ।

इससे उसके पुत्री को बहुत गुस्सा आ गया और रात को कोठरी से सभी सामान निकाल दिया और अपनी मां को उसमें बंद कर दिया और  प्रातः काल उसे निकाल तथा स्नानं  करा के पूजा -पाठ करवाई,जिससे इसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई और इस प्रकार अब वह  प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी इस बात के प्रभाव से उसकी मां बहुत धनवान हो गई और बृहस्पति जी के प्रभाव से इस लोक के सुख को भोग को प्राप्त करके स्वर्ग को प्राप्त हुए

 बोलो विष्णु भगवान  की जय । बृहस्पति देव की जय ।।

बृहस्पतिवार की पूजा अर्चना विधिपूर्वक करने के पश्चात भगवान बृहस्पति देव की आरती अवश्य ही करनी चाहिए 

जय वृहस्पति देवा,

ऊँ जय वृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगा‌ऊँ,

कदली फल मेवा ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा,

तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर,

तुम सबके स्वामी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल,

सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक,

कृपा करो भर्ता ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर,

जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर,

आकर द्घार खड़े ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि,

भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता,

भव बंधन हारी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक,

सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटा‌ओ,

संतन सुखकारी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

जो को‌ई आरती तेरी,

प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर,

सो निश्चय पावे ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।

बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥