KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

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KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 2

Add Your Heading Text Here KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 2 KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 2 भगवान श्रीकृष्ण आगे बोले: हे प्रिये! जब गुणवती को

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KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1 KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1 कार्तिक मास को शास्त्रों में बहुत ही शुभ माना गया है। इसी महीने

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KARTIK MAAS KI MAHIMA

KARTIK MAAS KI MAHIMA / कार्तिक मास की महिमा /क्या करे और क्या न करे ? KARTIK MAAS KI MAHIMA / कार्तिक मास की महिमा

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SHRI SUKTAM PATH IN HINDI

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GURUVAR Vrat Katha IN HINDI

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KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

कार्तिक मास को शास्त्रों में बहुत ही शुभ माना गया है। इसी महीने में भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा के बाद जागते हैं। साथ ही इस महीने में मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को सुख समृद्धि मिलती है

कार्तिक मास (Kartik Maas) हिंदू संस्कृति में एक अत्यंत पवित्र मास है। इसे दामोदर मास के नाम से भी जाना जाता है। यह पवित्र मास भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है एवं वैदिक शास्त्रों के अनुसार तपस्या करने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय के रूप में वर्णित किया गया है।

KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1 जैसे सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है, और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है, वैसे ही कार्तिक के समान कोई मास नहीं है (स्कंद पुराण)। जो भक्तगण कार्तिक मास के दौरान भक्तिमय सेवा करते हैं, उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की व्यक्तिगत कृपा बहुत सरलता से प्राप्त हो जाती है। कार्तिक मास में भक्त उपवास करते हैं, दामोदर स्वरुप श्रीकृष्ण की पूजा घी के दीपक से करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, दामोदर लीला का महिमामंडन करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं

KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार सनकादि ऋषियों से कहा: अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ, जिसका श्रवण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

सूतजी ने कहा: श्रीकृष्ण जी से अनुमति लेकर देवर्षि नारद के चले जाने के पश्चात सत्यभामा प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण से बोली: हे प्रभु! मैं धन्य हुई, मेरा जन्म सफल हुआ, मुझ जैसी त्रौलोक्य सुन्दरी के जन्मदाता भी धन्य हैं, जो आपकी सोलह हजार स्त्रियों के बीच में आपकी परम प्यारी पत्नी बनी। मैंने आपके साथ नारद जी को वह कल्पवृक्ष आदिपुरुष विधिपूर्वक दान में दिया, परन्तु वही कल्पवृक्ष मेरे घर लहराया करता है। यह बात मृत्युलोक में किसी स्त्री को ज्ञात नहीं है।

हे त्रिलोकीनाथ! मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छुक हूँ। आप मुझे कृपया कार्तिक माहात्म्य की कथा विस्तारपूर्वक सुनाइये जिसको सुनकर मेरा हित हो और जिसके करने से कल्पपर्यन्त भी आप मुझसे विमुख न हों। KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

सूतजी आगे बोले: सत्यभामा के ऎसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सत्यभामा का हाथ पकड़ा और अपने सेवकों को वहीं रुकने के लिए कहकर विलासयुक्त अपनी पत्नी को कल्पवृक्ष के नीचे ले गये फिर हंसकर बोले: हे प्रिये! सोलह हजार रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो। तुम्हारे लिए मैंने इन्द्र एवं देवताओं से विरोध किया था। हे कान्ते! जो बात तुमने मुझसे पूछी है, उसे सुनो। KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

एक दिन मैंने(श्रीकृष्ण) तुम्हारी(सत्यभामा) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष मांगा। इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्राम हुआ और गौ लोक में भी गरुड़ जी गौओं से युद्ध किया।

एक दिन मैंने(श्रीकृष्ण) तुम्हारी(सत्यभामा) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष मांगा। इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्राम हुआ और गौ लोक में भी गरुड़ जी गौओं से युद्ध किया।KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

गरुड़ की चोंच की चोट से उनके कान एवं पूंछ कटकर गिरने लगे जिससे तीन वस्तुएँ उत्पन्न हुई। कान से तम्बाकू, पूँछ से गोभी और रक्त से मेहंदी बनी। इन तीनों का प्रयोग करने वाले को मोक्ष नहीं मिलता तब गौओं ने भी क्रोधित होकर गरुड़ पर वार किया जिससे उनके तीन पंख टूटकर गिर गये। इनके पहले पंख से नीलकण्ठ, दूसरे से मोर और तीसरे से चकवा-चकवी उत्पन्न हुए। हे प्रिये! इन तीनों का दर्शन करने मात्र से ही शुभ फल प्राप्त हो जाता है।KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

यह सुनकर सत्यभामा ने कहा: हे प्रभो! कृपया मुझे मेरे पूर्व जन्मों के विषय में बताइए कि मैंने पूर्व जन्म में कौन-कौन से दान, व्रत व जप नहीं किए हैं। मेरा स्वभाव कैसा था, मेरे जन्मदाता कौन थे और मुझे मृत्युलोक में जन्म क्यों लेना पड़ा। मैंने ऎसा कौन सा पुण्य कर्म किया था जिससे मैं आपकी अर्द्धांगिनी हुई?KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

श्रीकृष्ण ने कहा: हे प्रिये! अब मै तुम्हारे द्वारा पूर्व जन्म में किये गये पुण्य कर्मों को विस्तारपूर्वक कहता हूँ, उसे सुनो। पूर्व समय में सतयुग के अन्त में मायापुरी में अत्रि-गोत्र में वेद-वेदान्त का ज्ञाता देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। वह प्रतिदिन अतिथियों की सेवा, हवन और सूर्य भगवान का पूजन किया करता था। वह सूर्य के समान तेजस्वी था। वृद्धावस्था में उसे गुणवती नामक कन्या की प्राप्ति हुई। उस पुत्रहीन ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह अपने ही चन्द्र नामक शिष्य के साथ कर दिया। वह चन्द्र को अपने पुत्र के समान मानता था और चन्द्र भी उसे अपने पिता की भाँति सम्मान देता था।KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

एक दिन वे दोनों कुश व समिधा लेने के लिए जंगल में गये। जब वे हिमालय की तलहटी में भ्रमण कर रहे थे तब उन्हें एक राक्षस आता हुआ दिखाई दिया। उस राक्षस को देखकर भय के कारण उनके अंग शिथिल हो गये और वे वहाँ से भागने में भी असमर्थ हो गये तब उस काल के समान राक्षस ने उन दोनों को मार डाला। चूंकि वे धर्मात्मा थे इसलिए मेरे पार्षद उन्हें मेरे वैकुण्ठ धाम में मेरे पास ले आये। उन दोनों द्वारा आजीवन सूर्य भगवान की पूजा किये जाने के कारण मैं दोनों पर अति प्रसन्न हुआ।KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

गणेश जी, शिवजी, सूर्य व देवी, इन सबकी पूजा करने वाले मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मैं एक होता हुआ भी काल और कर्मों के भेद से पांच प्रकार का होता हूँ। जैसे- एक देवदत्त, पिता, भ्राता, आदि नामों से पुकारा जाता है। जब वे दोनों विमान पर आरुढ़ होकर सूर्य के समान तेजस्वी, रूपवान, चन्दन की माला धारण किये हुए मेरे भवन में आये तो वे दिव्य भोगों को भोगने लगे। KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 1

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