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KARTIK MAAS KI ADHYAY 6
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 नारदजी बोले-जब दो घड़ी रात शेष रहे उस समय तिल, कुश, चावल (अक्षत), चन्दन इत्यादि लेकर शुद्धता के साथ जलाशय पर जाए। नहर की अपेक्षा क्रम से दसगुना झरना में, झरना से दसगुना नदी में और नदी से दसगुना संगम पर स्नान करने से फल प्राप्त होता है ऐसा कहा गया है और तीर्थ में स्नान करने से इनका दूना फल प्राप्त होता है।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 स्नान के पूर्व विष्णु भगवान् का ध्यान करके स्नान करने के लिए संकल्प करे फिर तीर्थ में उपस्थित देवताओं को क्रमशः अर्घ्य, पाद्य, आचमनीयादि देवे। अर्घ्य मन्त्रार्थ – “हे कमलनाथ ! आपको नमस्कार है। हे जलशायी भगवन् ! आपको नमस्कार है। हे हृषीकेश ! आपको प्रणाम है, मेरे दिए हुए अर्घ्य को आप स्वीकार करें। बैकुण्ठ, प्रयाग तथा बदरिकारण्य में जहां कहीं विष्णु भगवान् गए वहां विष्णु भगवान् ने तीन प्रकार से अपना पैर रखा था।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 अतएव जहां कहीं विष्णु भगवान् ने अपना चरण रखा, वहां पर ऋषि, वेद, यज्ञों के सहित समस्त देवता मेरी सदैव रक्षा करते रहें। हे जनार्दन ! हे दामोदर ! हे देवेश ! आपको प्रसन्न करने के लिए मैं सदैव विधिवत् विधि से कार्तिक में प्रातः स्नान करूंगा। हे दामोदर ! मैं आपका ध्यान करता हूं और आपको सप्रणाम करके इस जगह जल में स्नान करने के लिए प्रविष्टि कर रहा हूं। आपकी कृपा से मेरे समस्त पाप नष्ट हो जावें। और आपकी असीम अनुकंपा मुझे प्राप्त हो
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 हे हरे ! KARTIK MAAS में व्रत तथा विधिपूर्वक स्नान करने वाला मैं अर्घ्य देता हूं, आप राधिका के सहित इसे स्वीकार करें। हे कृष्ण भगवान ! हे राक्षसों का नाश करने वाले प्रभु ! हे पापनाशक ! इस कार्तिक मास में नित्य-नैमित्तिक कर्मों के द्वारा दिए हुए मेरे इस अर्घ्य को आप स्वीकार करें। अपनी कृपा दृष्टि मुझ पर बनाए रखें ।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 कार्तिक स्नान का व्रत करने वाले को भागीरथी मां गंगा, भगवान श्री हरि विष्णु, भगवान शङ्कर तथा सूर्यदेव का ध्यान करके जल में प्रविष्टि करे और नाभि तक जल आ जाए ऐसे खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करे।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 सप्तमी, अमावस्या, नवमी, त्रयोदशी, द्वितीया, दशमी तिथियों को आंवला तथा तिल से स्नान न करना चाहिए। अपनी नित्य क्रियो को पूरा करने के पश्चात पुनः मन्त्रस्नान करे। पापनाशक विष्णु भगवान् अपनी कृपा है मुझे पवित्र बनावें। भगवान विष्णु की आज्ञा से कार्तिक व्रत करने वालों की समस्त इन्द्रादि देवता रक्षा करते हैं; अतः वे सब मुझको पवित्र को बीजों, रहस्यों तथा यज्ञों सहित समस्त वेदों के मन्त्र, कश्यपादिक ऋषि, इन्द्रादि समस्त देवत मुझको पवित्रता प्रदान करें।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 गंगादि सभी नदियां, सम्पूर्ण तीर्थ, सातों समुद्र और समस्त जलाशय हमको पवित्रता प्रदान करें। अदिति आदि सती नारियां, यश्त सिद्ध, सर्प, सब औषधियां, तीनों लोक पर्वत मुझे पवित्र करें।इस प्रकार के मन्त्रों को कहकर स्नान करने के पश्चात् व्रती हाथ में पविः धारण करके देवता, ऋषि, मनुष्य तथा पिता का विधिवत् तर्पण करे।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 तत्पश्चात् व्रत करने वाला जल से स्नान करने के उपरांत शुद्ध एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करें और प्रातःकाल के सब कृत्यों से निवृत्त होकर पुनः विष्णु भगवान् का पूजन करना चाहिए।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 समस्त तीर्थ के सम्पूर्ण देवताओं का स्मरण करके भक्तिपूर्वक उनका चन्दन, फूल और फल सहित विष्णु भगवान् को फिर अर्घ्य देवे। अर्घ्य मन्त्र का अर्थ-नियम से पवित्र कार्तिक मास में मैंने स्नान किया है। हे विष्णु भगवान् ! राधा के साथ आप मेरे दिए अर्घ्य को स्वीकार करें। तब चन्दन, फूल और ताम्बूलादिकों से वेद के पारंगत ब्राह्मणों का श्रद्धापूर्वक पूजन करें और बारम्बार उनको प्रणाम करें।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 ब्राह्मणों के दाहिने पैर में तीर्थ विराजमान रहते हैं, मुख में वेद और समस्त अंगों में देवतागण निवास स्थान है ब्राह्मणों की पूजा करने से उन सभी की पूजा हो जाती है। इस भूतल में विष्णु भगवान् गुप्त रूप से ब्राह्मण के स्वरूप में निवास करते हैं।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 अपने कल्याण की कामना रखने वाले लोग इनका न अपमान करें और फिर एकान्त चित्त से विष्णु भगवान की जा तुलसी का पूजन करके उनकी परिक्रमा करके उन्हें प्रणाम करें। हे देवि !
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 हे तुलसी । देवता ने ही प्राचीन काल से तुम्हारा निर्माण किया। और ऋषियों ने तुम्हारा पूजन किया है । हे विष्णु की प्यारी तुलसी ! आपको प्रणाम है आप मेरे सब पापों का नाश करें। इसके पश्चा स्थिर चित्त से विष्णु भगवान् की पुराणोक कथा को श्रवण करना चाहिए और भक्तिपूर्वक वेद ब्राह्मणों का पूजन करना चाहिए।
KARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6 इस प्रकार भक्तिपूर्वक जो लोग पूर्वोक्त विधान से पूजा की विधि को करता है, उसे विष्णुलोक प्राप्त होता है। समस्त रोगों तथा पापों को नष्ट करने वाला मनुष्य को उत्तम बुद्धि देने वाला, पुत्र-धनाधि का साधन मुक्तिदायक कार्तिक के व्रत के अतिरिक्त कोई उत्तम व्रत इस संसार में नहीं है। जिसे करके मनुष्य अपने इस जन्म को सफल बनाता हैKARTIK MAAS KI KATHA ADHYAY 6
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