NAVRATRI 2024 Shri Durga Saptashi Athwa Adhyaya Ka Path /श्री दुर्गा सप्तशती के आठवां अध्याय का पाठ
NAVRATRI 2024 जिस देवता का जैसा रूप था, जैसे आभूषण थे और जैसा वाहन था, वैसा ही रूप, आभूषण और वाहन लेकर, उन देवताओं की शक्तियां दैत्यों से युद्ध करने के लिए आईं। Durga Saptashati Path/NAVRATRI 2024
वृषभ पर सवार होकर, हाथ में त्रिशूल लेकर, महानाग का कंकण पहन कर और चंद्ररेखा से भूषित होकर भगवान शंकर की शक्ति सिंहनी भी आई, उसकी गर्दन के झटकों से आकाश के तारे टूट पड़ते थे और इसी प्रकार देवराज इंद्र की शक्ति ऐन्द्री भी ऐरावत के ऊपर सवार होकर आई, पश्चात इन देव शक्तियों से घिरे हुए भगवान शंकर ने चंडिका से कहा- मेरी प्रसन्नता के लिए तुम शीघ्र ही इन असुरों को मारो।
NAVRATRI 2024/इसके पश्चात देवी के शरीर में से अत्यंत उग्र रूप वाली और सैकड़ों गीदड़ियों के समान आवाज़ करने वाली चंडिका शक्ति प्रकट हुई, उस अपराजिता देवी ने धूमिल जटा वाले भगवान शंकर जी से कहा- हे प्रभो ! आप मेरी ओर से दूत बनकर शुम्भ और निशुम्भ के पास जाइये और उन अत्यंत गर्वीले दैत्यों से कहिये NAVRATRI 2024
NAVRATRI 2024 तथा उनके अतिरिक्त और भी जो दैत्य वहाँ युद्ध के लिए उपस्थित हों, उनसे भी कहिये- जो तुम्हें अपने जीवित रहने की इच्छा हो तो त्रिलोकी का राज्य इंद्र को दे दो, देवताओं को उनका यज्ञ भाग मिलना आरंभ हो जाय और तुम पाताल को लौटे जाओ, किन्तु यदि बल के गर्व से तुम्हारी लड़ने की इच्छा हो तो फिर आ जाओ, तुम्हारे माँस से मेरी, योगिनियां तृप्त होगीं।
NAVRATRI 2024 चूँकि उस देवी ने भगवान शंकर को दूत के कार्य में नियुक्त किया था, इसलिए वह संसार में शिवदूती के नाम से विख्यात हुई।
NAVRATRI 2024 भगवान शंकर से देवी का सन्देश पाकर उन दैत्यों के क्रोध की सीमा न रही। युद्ध प्रारंभ हुआ। इंद्र की शक्ति इंद्राणी जिस तरफ दौड़ती थी, उसी तरफ अपने कमण्डलु का जल छिड़क कर दैत्यों के वीर्य व बल को नष्ट कर देती थी और इसी प्रकार माहेश्वरी त्रिशूल से, वैष्णवी चक्र से और अत्यंत कोपवाली कौमारी शक्ति द्वारा असुरों को मार रही थी और ऐन्द्री के बाजु के प्रहार से सैकड़ों दैत्य रक्त की नदियाँ बहाते हुए पृथवी पर सो गए । NAVRATRI 2024
वाराही ने कितने ही राक्षसों को अपनी थूथन द्वारा मृत्यु के घाट उतार दिया, दाढ़ों के अग्रभाग से कितने ही राक्षसों की छाती को चीर डाला और चक्र की चोट से कितनों ही को विदर्ण करके धरती पर डाल दिया । बड़े -२ राक्षसों को नारसिंही अपने नखों से विदर्ण करके भक्षण रही थी, शिवदूती के प्रचंड अट्टहास से कितने ही दैत्य भयभीत होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और उनके गिरते ही वह उनको भक्षण कर गई। NAVRATRI 2024
NAVRATRI 2024 इस तरह क्रोध में भरे हुए मातृगणों द्वारा नाना प्रकार के उपायों से बड़े-बड़े असुरों को मरते हुए देखकर राक्षसी सेना भाग खड़ी हुई और उनको इस प्रकार भागता देखकर रक्तबीज नामक महा पराक्रमी राक्षस क्रोध में भरकर युद्ध के लिए आगे बढ़ा।
NAVRATRI 2024 उसके शरीर से रक्त की बूँदें पृथ्वी पर जिसे ही गिरती थीं तुरन्त वैसे ही शरीर वाला तथा वैसा ही बलवान दैत्य पृथ्वी से उत्पन्न हो जाता था। NAVRATRI 2024 रक्तबीज गदा हाथ में लेकर इंद्री के साथ युद्ध करने लगा, जब इंद्रिशाक्ति ने अपने वज्र से उसको मारा तो घायल होने के कारण उसके शरीर से बहुत सा रक्त बहने लगा और उनकी प्रत्येक बूँद से उसके सामन ही बलवान तथा महा पराक्रमी अनेकों दैत्य भयंकर रूप से प्रकट हो गए, वह सब के सब दैत्य बीज के समान ही बलवान तेज वाले थे, वह भी भयंकर अस्त्र-शस्त्र लेकर देवियों के साथ लड़ने लगे। NAVRATRI 2024
NAVRATRI 2024 जब इंद्री के वज्र प्रहार से उनके मस्तक पर चोट लगी और रक्त बहने लगा तो उसमे से हज़ारों हो पुरुष उत्पन्न हो गए। वैष्णवी ने चक्र से और इंद्री ने गदा से रक्तबीज को चोट पहुचाई और वैष्णवी के चक्र से घायल होने पर उनके शरीर से जो रक्त बहा, उससे हजारों महा असुर उत्पन्न हुए, जिनके द्वारा यह सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया, कौमारी ने शक्ति, से वाराही ने खड्ग से अरु माहेश्वरी ने त्रिशूल से उसको घायल किया।
NAVRATRI 2024 इस प्रकार क्रोध में भरकर उस महादैत्य से सब मातृ शकितयों पर पृथक-पृथक गदा से प्रहार किया, और माताओं ने शक्ति तथा शूल इत्यादि से उसको जो बार-बार घायल किया, उससे सैकड़ों महादैत्य उत्पन्न हुए और इस प्रकार उस रक्तबीज के रुधिर से उत्पन्न हुए असुरों से सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया जिससे देवताओं को भय हुआ,
NAVRATRI 2024 इस प्रकार रक्त कम होने से यह दैत्य नष्ट हो जावेगा, तुम्हारे भक्षण करने के कारण अन्य दैत्य उत्पन्न नहीं होगें। काली से इस प्रकार कहकर चंडिका देवी ने रक्तबीज पर अपने त्रिशूल से प्र्हार किया और काली देवी ने अपने मुख में उसका रक्त ले लिया, तब उसने गदा से चंडिका पर प्रहार की
NAVRATRI 2024 प्रहार से चंडिका को तनिक भी कष्ट न हुआ, किन्तु रक्तबीज के शरीर से बहुत सा रक्त बहने लगा, लेकिन उसके गिरने के साथ ही काली ने उसको अपने मुख में ले लिया। काली के मुख में उस रक्त से जो असुर उतपन्न हुए, उनको उसने भक्षण कर लिया और रक्त को पीती गई, तदन्तर देवी ने रक्तबीज को जिसका की खून काली ने पिया था, चंडिका दैत्य को वज्र, बाण, खंडग और ऋष्टि इत्यादि से मार डाला।
NAVRATRI 2024 हे राजन ! अनेक प्रकार के शस्त्रों से मारा हुआ और खून से वंचित वह महादैत्य रक्तबीज पृथ्वी पर गिर पड़ा। हे राजन! उसके गिरने से देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और माताएं उन असुरों का रक्त पीने के पश्चात उद्धत हो कर नृत्य करने लगींं। NAVRATRI 2024