SURYA VRAT/सूर्य व्रत करने की अदभुत विधि ,उपाय और नियम 

सूर्य व्रत करने की विधि ,उपाय और नियम और लाभ /Surya vrat ki mahima,upay aur labh

सूर्य व्रत करने की विधि ,उपाय और नियम और लाभ 

सूर्य देव की महिमाअपरंपार है

सूर्य देव एक मात्र ऐसे देव है जो हमें रोज प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं हम सौभाग्यशाली हैं कि ईश्वर के दर्शन हमें रोज प्राप्त होते हैं तो क्यों ना हम ईश्वर के दर्शन मात्र से कुछ नियम और कुछ पद्धतियों के द्वारा अपने इन उसे परमात्मा के प्रति समर्पित हो जाए

सूर्य देव की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए कुछ उपाय अवश्य करने चाहिए

सूर्य देव संपूर्ण ब्रह्मांड को अपनी प्रकाश और ऊर्जा से प्रकाशित और ऊर्जावान करके आशीर्वाद के रूप में हमारे संपूर्ण शरीर को चलायमान बनाते हैं एक दिन भी सूर्य भगवान के बगैर हमारा जीवन-यापन अत्यंत कठिन हैउनकी कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिए रविवार का दिन सर्वोत्तम है 

सब दिनों में यदि यथा-विधि अनुसार सूर्य भगवान की उपासना की जाए तो इससे श्रेष्ठ कुछ भी नहीं, किंतु अगर किसी व्यक्ति को समय का अभाव है तो कम से कम रविवार के दिन ईश्वर की अनुकंपा प्राप्त करें और रोजमर्रा की जिंदगी में 1 मिनट का समय निकालकर की ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हो जाएइससे हमारे शरीर हमारे मन मस्तिष्क पर एक सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है ईश्वर हमें प्रत्यक्ष दर्शन दे रहे हैं

१-सूर्य भगवान को आग देने का सही तरीका क्या है?

     सूर्य भगवान को जल देने के लिए तांबे के पत्र का उपयोग किया जाता है इस तांबे के पत्र में एक चुटकी लाल सिंदूर अथवा लाल चंदन आप डाल सकते हैं और इसमें लाल फूल भी डाला जाता है

 आपको थाली में दीपक और लोटा रखना चाहिए,इसके पश्चात सूर्य भगवान को अपने सिर के ऊपर दोनों हाथ करते हुए ऊपर की ओर लगभग 8 इंच की दूरी परआपके हाथ आपके माथे से ऊपर होने चाहिए और नीचे नत- मस्तक होकर के जल की धारा में देखते हुए निरंतर सूर्य भगवान के मंत्र का ओम सूर्याय नमः का जाप करते हुए लगातार भगवान को पतली धार के रूप में जल देते रहना चाहिए और अपनी दृष्टि उसे पढ़ने वाले जल पर होनी चाहिए

उस जल की धारा में से आता हुआ प्रकाश आपके समस्त सात चक्र को संतुलित और शक्तिशाली बनाने में मदद करता है क्योंकि सूर्य में सात रंगों का समावेश उसे धारा में आ जाता है और हमारे साथ चक्र भी साथ रंगों सेबने हुए हैं जब यह प्रकाश हम उसे जल की धारा में देखते हैं तो उससे निकलने वाली किरणें और प्रकाश हमारे सातों चक्रों को संतुलित करता है और यह क्रिया अगर रोज अपना ही जाए तो यह हमारे लिए अत्यंत लाभकारी लाभकारी सिद्ध होती है

२-जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है उसे मान सम्मान और पद्धति के अवसर प्राप्त होते हैं उसी के विपरीत अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में surya vrat भी प्रकार से कमजोर होता है तो व्यक्ति को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैऐसे व्यक्ति के मान सम्मान में भी हानि होती है और उसे उतना आप पर विश्वास प्राप्त नहीं होता है

SURYA/सूर्य देव को तीन बार अर्घ्य देने की विधि रहती है एक बार अर्घ्य देने के बाद परिक्रमा करनी चाहिए, दूसरी बार फिर अर्घ्य देकर दूसरी परिक्रमा करनी चाहिए और तीसरी बार तीसरी अर्घ्य देकर के परिक्रमा करके उनको नत-मस्तक होकर प्रणाम करते हुए सच्चे हृदय से प्रार्थना करनी चाहिए

अतः सूर्य भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए कई उपाय किए जाते हैं जिसमें से कुछ उपाय प्रमुख है

१-रोज सुबह उठकर केसूर्य/ SURYA भगवान के दर्शन मात्र से हीऔर सच्चे मन से की गई प्रार्थना से ही उचित फल प्राप्त शुरू हो जाते हैं

२-ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप १०८ इस मंत्र का जब रोज करने से सूर्य/SURYA भगवान की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है

३- सूर्य भगवान को गुड अत्यंत प्रिय है अर्थात सूर्य/SURYA भगवान को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे में चावलऔर गुड़ भी डालकर आप उन्हें अर्घ समर्पित कर सकते हैं

४-रविवार के दिन मछलियों को आटे की गोलियां खिलाने से भीसूर्य भगवान के विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है

५-  SURYA/सूर्य देव की उपासना से व्यक्ति को बुद्धि के साथ-साथ भी प्राप्त होती है और मन मस्तिष्क में एक उचित संतुलन रहता है व्यक्ति के अंदर आत्म विश्वास का समावेश होता है SURYA/ सूर्य देव की उपासना करते समय आप सूर्य देव के मित्रों का जाप करने के साथ ही साथ उनके नाम का भी जाप कर सकते हैं 

६-सूर्य देव के इन 12 नामों का जाप करना भी शुभ होगा।

ॐ सूर्याय नम:

ॐ मित्राय नम:

ॐ रवये नम:

ॐ भानवे नम:

ॐ खगाय नम:

ॐ पूष्णे नम:

ॐ हिरण्यगर्भाय नम:

ॐ मारीचाय नम:

ॐ आदित्याय नम:

ॐ सावित्रे नम:

ॐ अर्काय नम:

ॐ भास्कराय नम:

७-सूर्य देव की पूजा करते समय आप लाल या पीले वस्तुओं को भी धारण कर सकते हैं और यथाशक्ति अनुसार गुड़,तांबा,गेहूं ,लाल ,मसूर की दाल आदि का भी दान करके अपने सूर्य को प्रबल बना सकते हैं

सूर्य देव की आशीष अनुकंपा प्राप्त करने के साथ-साथ इसे अपनी कुंडली में मजबूत बनाने के लिए सूर्य देव का व्रत भी किया जाता है

रविवार के व्रत की कथा नियम,विधि और लाभ क्या है

रविवार के दिन सूर्य भगवान की विशेष अनुकंपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थी कोसूर्योदय से पहले उठकर अपने दैनिक कर्मों से निवृत होकर के तैयार हो जाना चाहिए और पूजा की समस्त सामग्रियों को एकत्र  करके ईश्वर के समक्ष संकल्प लेने के लिए तैयार होना चाहिए ,इस दिन प्रार्थी को साफ कपड़े पहन करके घर के मंदिर में सूर्य भगवान की स्थापना अर्थात सूर्य भगवान प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं तो आप उनके समक्ष भी बैठ करके यह उपासना कर सकते हैं इसके बाद कथा का पाठ किया जाता है धूप दीप और प्रसाद के साथ में आरती करके उनको उच्चारण और कथा के माध्यम से प्रसन्न करने की कोशिश करनी चाहिए

रविवार के दिन सूर्य भगवान की पूजा पाठ करने वालों और विशेषता व्रत करने वालों की आयु लंबी होती है और उनके सौभाग्य में ईश्वर की अनुकंपा रहती है उनके शारीरिक और आत्मविश्वास उजागर होता है उन्हें समाज में मान -प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है और नौकरी और पदोन्नति के नए रास्ते खुल जाते हैं

रविवार की व्रत कथा इस प्रकार है

एक गांव में रहने वाली बुढ़िया की कहानी

इस कथा की मान्यता के अनुसार एक गांव जिसमें एक बुढ़िया  निवास करती थी वह प्रत्येक सुबह को अपने कर्मों से निवृत होकर के अपने घर को गोबर से लीपती  थी और भगवान सूर्य की पूजा उपासना करने के लिए भोजन तैयार करती थी और भोग लगाने के पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करती थी ईश्वर की कृपा से वह संपूर्ण सुखों से परिपूर्ण थी 

पड़ोसन ने गाय को घर के भीतर किया

लेकिन उसकी पड़ोसन उन्हें इन सब कार्यों को देखकर के अत्यंत क्रोधित होती थी और जिस गाय के गोबर से वह बुढ़ियाअपने घर को लीपती थी वह पड़ोसन के घर जाकर के गोबर लेकर के आई थी जब पड़ोसन ने के मन में द्वेष की भावना उत्पन्न हुई तो उसने अपनी गाय को बाहर बांधना बंद कर दिया और घर के भीतर बढ़ने लगी इस प्रकार सेबुढ़िया को अपने घर को गोबर से लीप नहीं पायी, पाई और नहीं किसी प्रकार का भोग तैयार कर पाई,वह स्वयं भी भूखी रही और निराहार रहकर ही उसने व्रत पूरा किया

सूर्य देव ने बुढ़िया को सपने में आकर दर्शन दिए

इस प्रकार से रात को सोते हुए बुढ़िया के स्वप्न में सूर्य भगवान स्वयं दर्शन देकर के यह कहते हैं कि उसने घर को लीप  भी नहीं और नहीं भोग तैयार किया तब बुढ़िया ने समस्त कथा भगवान को बताइए इस प्रकार की कथा को सुनकर सूर्य भगवान ने उसे अनुकंपा करते हुए उसे एक गाय और उसका एक बछड़ा दिया, इस प्रकार से अब हर रोज सुबह उठकर के  अपने घर को गोबर से लीपती  और भगवान के लिए भोग भी तैयार करती अब उसके आंगन में गाय और उनका बच्चा दोनों ही बंधे हुए थे

किंतु यह बात भी उसकी पड़ोसन को स्वीकार न हुई और उसमें द्वेष की भावना और ज्यादा बढ़ गई

गाय गए अब सोने का गोबर देने लगी

इस प्रकार से अब रोज गाय सोने का गोबर दे रही थी पड़ोसन पहले ही उठ जाती थी तो उसे जाकर के सोने का गोबर देखा तो वह उसे चुरा करके अपने घर चली गई और अपने घर को उसे सोने के गोबर से देखने देगी कई दिनों तक ऐसा कार्यक्रम चला रहा जब सूर्य देव को इस बात का आभास हुआ तो उन्होंनेअपनी कृपा से एक दिन शाम को बहुत जोर से आंधीचलाई जिसकी वजह से बुढ़िया ने गाय को और उसके बछड़े को अपने घर के अंदर ही बनी दिया ताकि वह सुरक्षित रह सके इस प्रकार से अगली सुबह को जब बुढ़िया होती है तो उसे वह सोने का गोबर देखकर आश्चर्य चकित हो जाती है और इस प्रकार से वह अपनी गाय के गोबर से अपने घर को लीपने लगी और भोग तैयार करके पूजा पाठ करने लगी

पड़ोसन ने द्वेष  की भावना से परिपूर्ण होकर के राजा से यह शिकायत की

इस प्रकार से बुढ़िया को निरंतर अग्रसर और उन्नत होते देखकर के पड़ोसन अत्यंत क्रोधित हो गई और उसे क्रोध में आकर राजा को समस्त कथा का बखान किया राजा अपने सैनिकों के साथ इस गाय को और उसका बच्चा लेने के लिए आए और उसको लेकर के चले गए

यह सब देखकर के बुढ़िया का मन बहुत उदास हो गया,लेकिन बुढ़िया ने सूर्य देव से प्रार्थना कहीं,उसी रात को सूर्य देव राजा के स्वप्न में आकर के यह कहते हैं कि वह बुढ़िया की गाय और बछड़े को तुरंत वापस कर दें अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो वह उसके राज्य को नष्ट कर देंगे इस प्रकार भयभीत होकर के राजा ने बुढ़िया को गए और उसका बच्चा दोनों ही लौटा दिया

राजा ने बुढ़िया को सम्मान के साधन और क्षमा याचना भी मांगी वही राजा ने पड़ोसन को और उसके पति को दंड प्रदान किया इस प्रकार से राजा ने पूरे राज्य में यह घोषणा करवाई कि अब से समस्तलोग सूर्य भगवान की उपासना अवश्य करें उनके व्रत और नियमों का पालन करें जिसके सब समस्त घरों में ईश्वर की अनुकंपा, ऐश्वर्या से लोग खुशहाल हो जाए

बोलो सूर्य देव महाराज की जय

सूर्य भगवान की आरती 

 (रविवार व्रत पूजा आरती) 

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।

जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।

धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।

अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।

फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।

गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।

स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।

प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।

वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान।।

 

पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।

ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान।।

 

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।

जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।

धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

 सूर्य चालीसा का पाठ

कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।

पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।

चौपाई

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।

भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।

विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।

अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।

सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।

अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़‍ि रथ पर।

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।

उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।

मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,

सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,

आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।

द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।

चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।

सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।

उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।

छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।

अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।

भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।

ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।

पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।

युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।

जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।

सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।

अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।

दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै

अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।

मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।

परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।

भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।

यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं

दोहा

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।

सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।

 

 

  

 

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