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TULSI VIVAH VRAT KATHA /NIYAM / UPAY / CHALISA /AARTI
तुलसी विवाह क्या होता है?
TULSI VIVAH VRAT KATHA धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी का विवाह करने से देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है और आर्थिक तंगी भी दूर हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह के दिन शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु और देवी तुलसी का विवाह हुआ था. ऐसे में इस दिन तुलसी विवाह कराने से विवाह और धन संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है
तुलसी विवाह 2024 में कब है ?
TULSI VIVAH VRAT KATHA
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की द्वादशी तिथि की शुरुआत मंगलवार, 12 नवंबर को शाम 4 बजकर 2 मिनट पर होगी. वहीं तिथि को समापन बुधवार 13 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट पर होगा. उदया तिथि की गणना के अनुसार, 13 नवंबर को तुलसी विवाह मनाया जाएगा.
तुलसी विवाह कैसे होता है ? तुलसी विवाह के क्या नियम है?
TULSI VIVAH VRAT KATHA देवउठनी एकादशी के अगले दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर शंख और घंटानाद सहित मंत्र बोलते हुए भगवान विष्णु को जगाया जाता है। उसके बाद उनकी विधिवत पूजा की जाती है। फिर उस दिन शाम के समय घरों और मंदिरों में दीये जलाए जाते हैं और सूर्यास्त के समय गोधूलि वेला में भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह करवाया जाता है। नियमपूर्वक तुलसी विवाह की संक्षिप्त विधि इस प्रकार है:
TULSI VIVAH VRAT KATHA १- तुलसी विवाह के लिए एक साफ चौकी पर आसन बिछा कर तुलसी और शालिग्राम की मूर्ति स्थापित कर लीजिए ।
२- उसके बाद उस चौकी के चारों और गन्ने और केले का मण्डप सजाएं और कलश की स्थापना करें।
३-अब सर्वप्रथम कलश और गौरी गणेश का पूजन करें।
४- फिर माता तुलसी और भगवान शालीग्राम को धूप, दीप, वस्त्र, माला, फूल चढ़ाएं और पूजा अर्चना करें
५-उसके बाद माता तुलसी को श्रृगांर के सभी सामान और लाल चुनरी चढ़ाएं।
६-पूजा के बाद तुलसी मंगलाष्टक का पाठ करें।
७-उसके बाद हाथ में आसन सहित शालीग्राम को लेकर तुलसी के सात फेरे लें।
८-सातों फेरे पूरे हो जाने के बाद भगवान विष्णु और तुलसी माता की श्रद्धा पूर्वकआरती करें।
९-आरती के बाद सपरिवार भगवान विष्णु और तुलसी माता को प्रणाम करें और पूजा संपन्न हो जाने के बाद परिवार के समस्त जनों में प्रसाद वितरित करें TULSI VIVAH VRAT KATHA
तुलसी विवाह व्रत कथा
TULSI VIVAH VRAT KATHA प्राचीन काल में एक लड़की का जन्म राक्षस कुल में हुआ, जिसका नाम वृंदा था। दैत्यराज कालनेमी जैसे राक्षस परिवार में पैदा होने के बाद भी वृंदा भगवान विष्णु की पूजा करती थी। जब वृंदा बड़ी हुई, तो उसकी शादी जालंधर नामक दैत्य से हो गई।
TULSI VIVAH VRAT KATHA जालंधर काफी शक्तिशाली राक्षस था, जिसका जन्म भगवान शिव के तेज के कारण समुद्र से हुआ था। बलवान होने के कारण जालंधर को दैत्यों का राजा बनाया गया। वृंदा से शादी करने के बाद जालंधर की शक्ति और पराक्रम बढ़ता ही गया। उसे किसी भी तरह से हराना मुश्किल था।
TULSI VIVAH VRAT KATHA जालंधर के बढ़ते अहंकार व आतंक से सभी देवता परेशान थे। जालंधर की बढ़ती ताकत के पीछे उसकी पत्नी वृंदा की विष्णु भक्ति और सतीत्व था। जालंधर अपनी शक्ति और अहंकार में चूर होकर स्वर्ग की देवियों पर काबू पाने की कोशिश करने लगा।
TULSI VIVAH VRAT KATHA इसी दौरान एक बार उसने माता लक्ष्मी को पाने का प्रयास किया, परंतु समुद्र से जन्म लेने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपना भाई बना लिया। फिर उसकी नजर माता पार्वती पर गई और उन्हें पाने के लिए जालंधर ने मायाजाल बनाया।
TULSI VIVAH VRAT KATHA अपने मायाजाल से जालंधर ने शिव का रूप धारण किया और माता पार्वती के करीब जाने की कोशिश करने लगा। उसी वक्त मां पार्वती ने उसे पहचान लिया और जब तक जालंधर कुछ समझ पाता वो अदृश्य हो गईं।
TULSI VIVAH VRAT KATHA जालंधर के इस दुर्व्यवहार से पार्वती जी को काफी गुस्सा आया और इस पूरी घटना के बारे में उन्होंने भगवान विष्णु को बताया। इधर, जालंधर भगवान शिव से पार्वती जी को पाने के लिए कैलाश पर्वत पर युद्ध कर रहा था।
TULSI VIVAH VRAT KATHA तभी भगवान विष्णु ने जालंधर को सबक सिखाने की ठानी। सभी को पता था कि जालंधर अपनी पत्नी के पूजा-पाठ और सतीत्व की वजह से ही अजेय हुआ है। ऐसे में भगवान विष्णु ने जालंधर को हराने के लिए उसकी पत्नी का पतिव्रत धर्म भंग करने के लिए मायावी चाल चली।
TULSI VIVAH VRAT KATHA भगवान विष्णु एक साधु का रूप धारण करके वृंदा से वन में मिलने पहुंचे। उनके साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखते ही वृंदा डर गई। तभी भगवान विष्णु ने उन दोनों राक्षसों का वृंदा के सामने ही वध कर दिया। वृंदा ये देख समझ गई ये कोई आम व्यक्ति नहीं है। उसी पल वृंदा ने साधु से अपने पति के बारे में पूछा। साधु बने भगवान ने अपनी मायाशक्ति से दो बंदर प्रकट किए। दोनों बंदरों के हाथों में जालंधर का सिर व धड़ था।
TULSI VIVAH VRAT KATHA ये देखते ही वृंदा बेहोश हो गई। कुछ समय बाद होश में आने पर वो साधु से अपने पति को दोबारा जिंदा करने की प्रार्थना करने लगी। वृंदा की विनती सुन उसके आंखों के सामने साधु ने अपनी माया से जालंधर के कटे हुए शरीर के हिस्सों को जोड़ दिया और स्वयं उस शरीर में समा गए। वृंदा को जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि उसके साथ ऐसा छल किया गया है।
TULSI VIVAH VRAT KATHA जालंधर का रूप धारण किए विष्णु जी को वृंदा अपना पति समझकर रहने लगी। वृंदा के ऐसा करने से उसका सतीत्व भंग हो गया, जिसके बाद जालंधर कैलाश पर्वत में युद्ध हार गया। जब वृंदा को यह सच पता चला, तो उसने गुस्से में विष्णु भगवान को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। इस घटना के बाद वृंदा स्वयं सती हो गई, जिस स्थान पर वह भस्म हुई वहां तुलसी का पौधा प्रकट हुआ।
TULSI VIVAH VRAT KATHA विष्णु भगवान् भी वृंदा की पति भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, “हे वृंदा! तुम्हारी पति भक्ति देखने के बाद तुम मुझे प्रिय लगने लगी हो। अब सदैव तुम मेरे साथ तुलसी के रूप में रहोगी। तुम्हारे तुलसी रूप का जो भी व्यक्ति मेरे शालिग्राम के साथ विवाह कराएगा उसे हजार गुना यश व पुण्य प्राप्त होगा। जिस भी मनुष्य के घर तुलसी का वास होगा, उस घर में कभी भी असमय यमदूत नहीं आएंगे।
TULSI VIVAH VRAT KATHA आगे भगवान ने कहा, तुलसी की पूजा करने वालों को गंगा व नर्मदा में स्नान करने के बराबर पुण्य प्राप्त होगा। संसार में चाहे कोई भी मनुष्य कितना भी दुष्ट क्यों न हो, कितने भी पाप क्यों न किए हों, मृत्यु के दौरान उसके मुंह में तुलसी और गंगा जल अवश्य दिया जाएगा। इससे वह अपने पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम जाएगा। इसके अलावा जो व्यक्ति तुलसी व आंवला के पेड़ की छाया में पितरों का श्राद्ध करेगा उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी
माँ तुलसी की आरती
जय तुलसी माता, जय तुलसी माता।TULSI VIVAH VRAT KATHA
सब जग की सुख दाता वर माता।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA अर्थ — हे तुलसी माता!! आपकी जय हो। आप ही इस जगत को सुख प्रदान करने वाली और हम सभी की माता हो अर्थात तुलसी माता के प्रभाव से ही हमें सुखों की प्राप्ति होती है।
सब योगों के ऊपर सब रोगों के ऊपर।
रूज से रक्ष करके, भव त्राता।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA अर्थ — तुलसी माता इस लोक में सबसे ऊपर हैं। उनसे ऊपर इस जगत में कोई भी नहीं है। तुलसी माता ही हमारे सभी रोगों का निवारण करती हैं और उनके पौधे में औषधीय गुण होते हैं। वे ही हमारी रक्षा करके हमारा उद्धार करती हैं।
बटुपुत्री, हे श्यामा, सूर वल्ली, हे गांव।
विष्णुप्रिये जो तुमको सेवे सो नर तर जाता।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA अर्थ — उनका एक नाम श्यामा भी है जो बटुपुत्री है और वे हर घर में निवास करती हैं अर्थात हम सभी के घर में तुलसी का पौधा होता है। वे भगवन श्री हरी विष्णु को बहुत प्रिय हैं और जो भी मनुष्य तुलसी माता की आरती करता है, वह भवसागर को पार कर जाता है।
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित।
पतितजनों की तारिणी तुम हो विख्याता।। TULSI VIVAH VRAT KATHA
अर्थ — तुलसी माता श्रीहरि के शीश पर चढ़ाई जाती हैं और उनकी तीनों लोकों में वंदना की जाती है। सभी के सुहाग की रक्षा करने वाली तुलसी माता हर जगह प्रसिद्ध हैं।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में।
मानव लोक तुम्हीं से सुख संपत्ति पाता।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA अर्थ — तुलसी माता ने इस मानव लोक में जन्म लेकर सभी को धन्य कर दिया और उनका भवन दिव्य ज्योति लिए हुए है। यह मनुष्य लोक तुलसी माता की कृपा से ही सभी तरह की सुख-संपदा को प्राप्त करता है।
हरि को तुम अति प्यारी तुम श्यामवर्ण सुकुमारी।
प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता।। TULSI VIVAH VRAT KATHA
अर्थ — तुलसी माता श्रीहरि को बहुत प्रिय लगती हैं और उनका वर्ण श्याम है। वे सुकुमारी हैं। तुलसी माता के लिए श्रीहरि का प्रेम बहुत ही अद्भुत है और हम सभी का उनसे माँ का नाता है। TULSI VIVAH VRAT KATHA
तुलसी चालीसा
।। तुलसी चालीसा दोहा ।।
श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय । जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय ।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA ।। तुलसी चालीसा चौपाई ।।
नमो नमो तुलसी महारानी । TULSI VIVAH VRAT KATHA महिमा अमित न जाए बखानी ।।
दियो विष्णु तुमको सनमाना । जग में छायो सुयश महाना ।।
विष्णु प्रिया जया जयति भवानी। तिहुँ लोक की हो सुखखानी।
भगवत पूजा कर जो कोई । बिना तुम्हारे सफल न होई ।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA जिन घर तव नहिं होय निवासा । उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा ।।
हमेशा वही करें जो आपको हमेशा याद रहे. उसके सारे कार्य सिद्ध हो गये।
कातिक मास महात्म तुम्हारा । ताको जानत सब संसारा ।।
तव पूजन जो करैं कुंवारी । पावै सुन्दर वर सुकुमारी ।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA कर जो पूजा नितप्रीति नारी । सुख सम्पत्ति से होय सुखारी ।।
वृद्धा नारी करै जो पूजन । मिले भक्ति होवै पुलकित मन ।।
श्रद्धा से पूजै जो कोई । भवनिधि से तर जावै सोई ।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA कथा भागवत यज्ञ करावै । तुम बिन नहीं सफलता पावै ।।
दुनिया भर में छाया फिर महिमा. ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन में । सकल काज सिधि होवै क्षण में ।।
औषधि रूप आप हो माता । सब जग में तव यश विख्याता ।।
देव रिषी मुनि और तपधारी । करत सदा तव जय जयकारी ।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA वेद पुरानन तव यश गाया । महिमा अगम पार नहिं पाया ।।
नमो नमो जै जै सुखकारनि । नमो नमो जै दुखनिवारनि ।।
नमो नमो सुखसम्पत्ति देनी । नमो नमो अघ काटन छेनी ।।
नमो नमो भक्तन दु:ख हरनी । नमो नमो दुष्टन मद छेनी ।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA नमो नमो भव पर उतरानि। नमो नमो परलोक सुधारनि।
नमो नमो निज भक्त उबारनि। नमो नमो जनकज संवराणि।।
प्रणाम, प्रणाम, जया, कुमति नशावनि। नमो नमो सब सुख उपजावनि।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA जयति जयति जय तुलसीमाई। मैं आपके सामने सिर झुकाता हूं.
निजजन जानि मोहि अपनाओ । बिगड़े कारज आप बनाओ ।।
करूं विनय मैं मात तुम्हारी । पूरण आशा करहु हमारी ।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA शरण चरण कर जोरि मनाऊं । निशदिन तेरे ही गुण गाऊं ।।
करहु मात यह अब मोपर दया । निर्मल होय सकल ममकाया ।।
मांगू मात यह बर दीजै । सकल मनोरथ पूर्ण कीजै ।।
TULSI VIVAH VRAT KATHA जानूं नहिं कुछ नेम अचारा । छमहु मात अपराध हमारा ।।
बारह मास करै जो पूजा । ता सम जग में और न दूजा ।।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे । फिर सुंदर स्नान करावे ।।
चंदन अक्षत पुष्प चढ़ावे । धूप दीप नैवेद्य लगावे ।। TULSI VIVAH VRAT KATHA
करे आचमन गंगा जल से । ध्यान करे हृदय निर्मल से ।
पाठ करे फिर चालीसा की । अस्तुति करे मात तुलसी की ।।
यह विधि पूजा करे हमेशा । ताके तन नहिं रहै क्लेशा ।।
करै मास कार्तिक का साधन । सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं ।। TULSI VIVAH VRAT KATHA
है यह कथा महा सुखदाई । पढ़ै सुने सो भव तर जाई ।।
।। तुलसी चालीसा दोहा ।।
यह श्री तुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय । गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय ।। TULSI VIVAH VRAT KATHA