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ToggleApara Ekadashi:Time Vrat Katha, Niyam and Importance
अपरा एकादशी हिंदुओं के लिए एक व्रत का दिन है जो हिंदू महीने ‘ज्येष्ठ’ में कृष्ण पक्ष की ‘एकादशी’ तिथि (11वें दिन) को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में, अपरा एकादशी मई और जून के महीनों में आती है। अपरा एकादशी व्रत रखने से, ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इस एकादशी को ‘अचला एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है, और यह दिव्य, शुभ फल प्रदान करती है। अपरा एकादशी भगवान विष्णु के पूजा करने के लिए समर्पित है।
एकादशी तिथि प्रारंभ: 23 मई, रात्रि 1:12 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 23 मई, रात्रि 10:30 बजे
हिंदी शब्द ‘अपार’ का अर्थ है ‘असीमित’, ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से भक्त को असीमित धन की प्राप्ति होती है, इसलिए इसका नाम ‘अपरा एकादशी’ है। इस एकादशी का अर्थ इसके कर्ता को असीमित लाभ दिलाने के लिए भी लगाया जा सकता है। ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण में अपरा एकादशी के महत्व का विस्तार से वर्णन किया गया है। अपरा एकादशी व्रत पूरे देश में अलग-अलग नामों से श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। पंजाब, जम्मू और कश्मीर और हरियाणा राज्य में अपरा एकादशी को ‘भद्रकाली एकादशी’ के रूप में मनाया जाता है और इस दिन देवी भद्रकाली की पूजा करना शुभ माना जाता है। विष्णु चालीसा और विष्णु सहस्रनाम का जाप किया जाता है।
IMPORTANCE OF APARA EKADASHI
1-आध्यात्मिक विकास
अपरा एकादशी को पापों और पिछले कर्मों को धोने और आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली दिन माना जाता है।
2-पुण्य
भक्तों का मानना है कि इस दिन उपवास करने और भगवान की सेवा करने से उन्हें आध्यात्मिक पुण्य और आशीर्वाद मिलता है।
3-मनोकामना पूर्ति
भक्तों का मानना है कि इस दिन उपवास करने से उनकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
4-मोक्ष
भक्तों का मानना है कि अपरा एकादशी का पालन करने से उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
APARA EKADASHI VRAT NIYAM
उपवास: कुछ लोग कठोर उपवास रखते हैं, जबकि अन्य फल, दूध और गैर-अनाज वाले खाद्य पदार्थ खाते हैं।
2-पोशाक: भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पीले कपड़े पहनें।
3-कुछ खाद्य पदार्थों से बचें: अनाज, दालें, फलियाँ और मांस खाने से बचें।
4-कुछ कार्यों से बचें: किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने, बहस शुरू करने या दूसरों का मज़ाक उड़ाने से बचें।
5-अनुष्ठान करें: सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और भगवान विष्णु और लड्डू गोपाल की पूजा करने के लिए अनुष्ठान करें।
6-भोग लगाएँ: भगवान विष्णु को फल, सूखे मेवे, मिठाई और पंचामृत चढ़ाएँ।
7-आरती करें: भगवान विष्णु की आरती के साथ अनुष्ठान समाप्त करें।
8-व्रत तोड़ें: सात्विक भोजन के साथ व्रत तोड़ें।
9-दान करें: जरूरतमंदों को भोजन और कपड़े दान करें
APARA EKADASHI VRAT KATHA
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे: हे राजन! ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी तथा अपरा एकादशी दोनो ही नामों से जाना जाता है। क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।
इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।
एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को ज्ञानचक्षु से देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।
दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को सप्रेम धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।
एकादशी माता की आरती (Ekadashi Mata Ki Aarti)
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
EKADASHI KI AARTI
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥

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