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ToggleCHAITRA NAVRATRI 2025 POOJA VIDHI/DATE/TIME/SIGNIFICANCE/KATHA AARTI
SIGNIFICANCE OF CHAITRA NAVRATRI/DATE AND TIME
इस वर्ष कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6.12 बजे से 10.22 बजे तक रहेगा। जबकि पूजा के लिए अभिजीत मुहूर्त 12.01 बजे दोपहर से बजे से 12.50 बजे तक रहेगा। वहीं 6 अप्रैल को महानवमी व्रत श्रद्धालु पुनवर्सु व पुष्य नक्षत्र में मनाएंगे। इस दिन सुबह 9.40 बजे तक पुनर्वसु नक्षत्र व इसके बाद पुष्य नक्षत्र रहेगा।
प्रतिपदा 30 मार्च शैलपुत्री
द्वितीया 31 मार्च ब्रह्मचारिणी
तृतीया 01 अप्रैल चंद्रघंटा
चतुर्थी 02 अप्रैल कुष्मांडा
पंचमी 03 अप्रैल स्कंदमाता
षष्ठी 04 अप्रैल कात्यायनी
सप्तमी 05 अप्रैल कालरात्रि
अष्टमी व नवमी 06 अप्रैल महागौरी व सिद्धिदात्री
IMPORTANCE OF CHAITRA NAVRATRI
चैत्र नवरात्रि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, क्योंकि यह हिंदू नववर्ष की शुरुआत और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, साथ ही यह आध्यात्मिक शक्ति और नई शुरुआत का समय माना जाता है.
चैत्र नवरात्रि का महत्व:
1-हिंदू नववर्ष की शुरुआत:
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है, जो पंचांग की गणना का आधार भी है.
2-वसंत ऋतु का आगमन:
चैत्र नवरात्रि वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जो बदलाव, उर्वरता और नई शुरुआत का प्रतीक है.
3-आध्यात्मिक शक्ति:
चैत्र नवरात्रि को आध्यात्मिक शक्ति और नई शुरुआत का समय माना जाता है, जहाँ लोग देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं.
4-राम नवमी:
चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन राम नवमी मनाई जाती है, जो भगवान राम के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है.
5-सांसारिक और आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति:
चैत्र नवरात्रि आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मानी जाती है, जबकि शारदीय नवरात्रि
सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने वाली मानी जाती है.
मानसिक और शारीरिक शक्ति:
नवरात्रि के दौरान व्रत और पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शक्ति मिलती है, साथ ही व्यक्ति का मन और तन शुद्ध हो जाता है.
6-महिषासुर मर्दन:
पौराणिक कथा के अनुसार, नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था, इसलिए नवरात्रि शक्ति और विजय का प्रतीक है.
7-नवरात्रि के नौ दिन:
नवरात्रि के नौ दिन देवी के नौ रूपों को समर्पित होते हैं, जिनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल हैं.
8-सात्विक साधना:
चैत्र नवरात्रि में सात्विक साधना, नृत्य और उत्सव मनाया जाता
है, जबकि शारदीय नवरात्रि में कठिन साधना और कठिन व्रत का महत्व होता है.
चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। चैत्र नवरात्र का धार्मिक दृष्टि से खास महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का कार्य शुरु किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरु होता है।
NAVRATRI POOJAN VIDHI
1-नवरात्र के पहले दिन घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक बनाएं और दरवाजे पर आम के पत्ते का तोरण लगाएं। क्योंकि माता इस दिन भक्तों के घर में आती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में निवास करती हैं।
2-नवरात्र में माता की मूर्ति को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्थापित करना चाहिए।
3-जहां मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं।
4-उसके बाद रोली और अक्षत से टीकें और फिर वहां माता की मूर्ति को स्थापित करें। उसके बाद विधिविधान से माता की पूजा करें।
5-वास्तुशास्त्र के अनुसार, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण को पूजा के लिए सर्वोत्तम स्थान माना गया है।
6-आप भी अगर हर साल कलश स्थापना करते हैं तो आपकी इसी दिशा में कलश रखना चाहिए और माता की चौकी सजानी चाहिए।
7-नवरात्रि के दिनों में कण-कण में मां दुर्गा का वास माना जाता है और पूरा वातावरण भक्तिमय रहता है।
IMPORTANCE OF CHITRA NAVRATRI IN JYOTISH
ज्योतिषीय दृष्टि से चैत्र नवरात्र का खास महत्व है क्योंकि इस नवरात्र के दौरान या आसपास सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। इसी दिन से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनापति, वर्षा, कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है और वर्ष में अन्न, धन, व्यापार और सुख शांति का आंकलन किया जाता है। नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे।
इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरु होता है। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है।
CHITRA NAVRATRI POOJA SAMAGRI
चैत्र नवरात्रि घटस्थापना के लिए निम्नलिखित पूजा सामग्री आवश्यक होती है-
चावल
लाल वर्स्त्र
पुष्प कलश
माता की फोटो
7 प्रकार के अनाज
पवित्र मिट्टी
गंगाजल
आम या अशोक के पत्ते
सुपारी
जटा वाला नारियल
पुष्प
CHAITRA NAVRATRI BHOG
नवरात्रि 2024 नवरात्रि के दिन देवी मां का दिन
पहला दिवस – माँ शैलपुत्री देवी – देशी घी
दूसरा दिवस – ब्रह्मचारिणी दिवस शक़्कर, – सफ़ेद मिठाई, मिश्री और फल
तीसरा दिवस – चंद्रघंटा देवी – मिठाई और खीर
चौथा दिवस – कुष्मांडा देवी – मालपुआ
पांचवां दिवस – स्कंदमाता देवी – केला
छठा दिवस – कात्यायनी देवी – शहद
सातवां दिवस – कालरात्रि दिवस – गुड़
आठवां दिन – महागौरी देवी – नारियल
KATHA
नवरात्रि (chaitra navratri in Hindi) हिन्दुओं के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है। यह तो सभी जानते हैं कि नवरात्रि में देवी दुर्गा के अलग अलग रूपों की पूजा की जाती है। लेकिन इन नवरात्रि के पीछे की एक पौराणिक कथा भी है। दरअसल पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीनकाल में महिषासुर नाम का एक दानव हुआ करता था। उसने कठोर तपस्या से ब्रम्हा जी को प्रसन्न कर लिया। ब्रम्हा ने प्रसन्न होकर उससे वरदान मांगने को कहा। तब महिषासुर दानव ने भगवान ब्रम्हा से अमर होने का वरदान माँगा। ब्रम्हा ने कहा कि अमर होने का वरदान नहीं दिया जा सकता। तब उसने ब्रम्हा से यह वरदान माँगा कि कोई पुरुष या देव अथवा दानव उसे न मार सके। ब्रम्हा ने उसे वरदान दे दिया कि तीनों लोकों में कोई पुरुष, देव अथवा दानव उसे नहीं मार सकता है। यह वरदान पाने के बाद महिषासुर दानव के अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ने लगे। उसे यह विश्वास हो चला था कि ब्रम्हा के वरदान के बाद अब वह अमर हो चला है।
एक दिन उसने देवलोक पर आक्रमण कर दिया। इस बात से घबराकर सभी देवता ब्रम्हा, विष्णु और महेश की शरण में गए। क्योंकि कोई पुरुष, देवता या दानव महिषासुर दानव का वध नहीं कर सकता था इसलिए मां आदिशक्ति देवी दुर्गा का रूप में प्रकट हुई। नौ दिनों तक महिषासुर दानव और देवी दुर्गा के बीच में घमासान युद्ध चला। दसवें दिन मां दुर्गा ने दुष्ट दानव महिषासुर का अंत कर दिया। इसी उपलक्ष्य में हर वर्ष नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है
CHAITRA NAVRATRI MEIN KYA KARE AUR KYA NA KARE
नवरात्रि में मांस, मछली, शराब, प्याज़, लहसुन जैसी चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए.
नवरात्रि में सात्विक और शुद्ध भोजन करना चाहिए.
नवरात्रि में बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए.
नवरात्रि में किसी भी महिला का अपमान नहीं करना चाहिए.
नवरात्रि में किसी से भी झूठ नहीं बोलना चाहिए.
नवरात्रि में गुस्सा करने से बचना चाहिए.
नवरात्रि में बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए.
नवरात्रि में सरसों का तेल और तिल का सेवन करने से बचना चाहिए.
नवरात्रि में रोज़ाना इस्तेमाल होने वाले नमक के सेवन से बचना चाहिए.
नवरात्रि में चमड़े की बेल्ट, जूते, जैकेट, ब्रेसलेट वगैरह पहनने से बचना चाहिए.
नवरात्रि में क्या करना चाहिए:
नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा करनी चाहिए.
नवरात्रि में नारी शक्ति का सम्मान करना चाहिए.
नवरात्रि में एक वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक की कन्याओं का पूजन करना चाहिए.
नवरात्रि में देवी की आराधना में ज़्यादा से ज़्यादा समय व्यतीत करना चाहिए.
AARTI OF MA DURGA
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
जय अम्बे गौरी
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
जय अम्बे गौरी

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